बेचारा ...बेबस... लाचार दिल
आँखों से कितनी दूर है
जो बस गए हैं सपने
उन्हें सच समझने को मजबूर है
आँखों की कहानी अपनी है
जो देखा बस वोही खीर पकनी है
छल फ़रेब की चाल रोज़ बदलनी है
क्या करे दिल की दुनियाँ का
वहाँ तो सिर्फ़ दिल की ही दाल गलनी है
हाँ ....बंद आंखें दिल को देखती हैं
मगर आँखों को
बंद आँखों से देखने पर भरोसा ही नहीं
क्यूंकि वो जानती हैं कि दिल मजबूर है
और सच्चाई सपनों से कितनी दूर है
यूँ हर किसी का दिल आँखों से दूर है
बेबस... बेचारा....दिल... मजबूर है
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बंद आँखों से देखने पर भरोसा ही नहीं
क्यूंकि वो जानती हैं कि दिल मजबूर है ,,,,,,,बहुत बढ़िया आ. Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी |
आदरणीय Saurabh Pandey जी हार्दिक अभिनंदन एवं आभार ...सादर
कोमल सी बहुत खूब प्रस्तुति हुई है !
शुभ-शुभ
आदरणीय narendrasinh chauhan जी हार्दिक धन्यवाद ...सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी पसन्दगी के लिये धन्यवाद ....सादर
आदरणीय Samar kabeer जी हार्दिक आभार ...सादर
खूब सुन्दर रचना
अच्छी रचना है आदरणीय .
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