तेरी चाहत में
सारी उम्र गलाना अच्छा लगा !
ना पा कर भी
तुझे चाहना अच्छा लगा !
लिख लिख के अशआर
तुझे सुनाना अच्छा लगा !
सच कहूँ तो मुझे
ये जीने का बहाना अच्छा लगा !!
दुप्पट्टा खिसका कर
चाँद की झलक दिखाना अच्छा लगा !
पास से निकली तो
हलके से मुड़ के तेरा मुस्कुराना अच्छा लगा !
बदली से निकल कर आज
चाँद का सामने आना अच्छा लगा !!
मिलने नहीं आयी मगर
रात सपनों में तेरा आना अच्छा लगा !
ला इलाज ही सही मगर
प्रेम का ये रोग लगाना अच्छा लगा !
तनहा हूँ मगर मुझे
इस तरहां दिल को जलाना अच्छा लगा !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सच कहूँ तो मुझे ये जीने का बहाना अच्छा लगा !! वाह..बहुत सुन्दर!!
इस बीच में obo पर कम आ सका इस बीच कई रचनाए छूट गयी!आपकी कमेन्ट के माध्यम से रचना पर आ सका!
मुहब्बत का रंग लिए अल्हड़ सी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय 'इंतजार' सर!
आ : ...आप सब का बहुत आभारी हूँ आप की उपस्तिथि और प्रसंशा के लिये ...बहुत दिन के बाद आ पाया हूँ मंच पर इसलिए काफी देर से आप का धन्यवाद कर रहा हूँ .......सादर
तेरी चाहत में
सारी उम्र गलाना अच्छा लगा !
ना पा कर भी
तुझे चाहना अच्छा लगा !
लिख लिख के अशआर
तुझे सुनाना अच्छा लगा !
सच कहूँ तो मुझे
ये जीने का बहाना अच्छा लगा !!
अति सुन्दर भाव। हार्दिक बधाई।
अति सुन्दर भाव। हार्दिक बधाई।
वाह! आदरणीय मोहन जी, बहुत सुंदर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई
सांसारिक प्रेम की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है....
मनभावन भाव पिरोती अभिव्यक्ति पर बधाई आ० मोहन सेठी जी
आपका यूँ शरूर में आना अच्छा लगा.
सुन्दर प्रस्तुति
तनहा हूँ मगर मुझे
इस तरहां दिल को जलाना अच्छा लगा !! ......बहुत सुन्दर रचना आ. मोहन सेठी जी ! बधाई ,सादर
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