For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके- ग़ज़ल

1212 1122 1212 112/22

वो मेरे सामने आने पे मुस्कुरा न सके

नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके

 

हज़ार कोशिशें की रश्क़ तो छुपा न सके

मगर हँसी में मेरी बात भी उड़ा न सके

 

उन्होंने जिक्र मेरा छेड़ तो दिया सरे बज़्म

वही बातें मेरे होते वो दोहरा न सके

 

हर एक सम्त से नज़रें उठीं हमारी तरफ

कि कहते कहते भी वो हालेदिल सुना न सके

 

बस एक रोज़ की थी ज़िन्दगानी फूलों की

वो बदनसीब रहे जो चमन सजा न सके

 

न पूछिये मेरी बेचारगी का आलम, आह!

कि आते आते भी ये अश्क़ बाहर आ न सके

मौलिक अप्रकाशित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 23, 2015 at 3:44pm

सबसे पहले तो विलंब के लिये मैं आप सभी से मुआफ़ी चाहूँगा कुछ निजी कुछ तकनीकी कारणों से ओबीओ पर सक्रिय नहीं रह पा रहा हूँ।
रचना की सराहना के लिये आप सभी का आभार आदरणीया राजेश दीदी एवं जनाब समर कबीर साहब इस्लाह के लिये तहेदिल से शुक्रिया।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 10, 2015 at 12:17am

खूबसूरत ग़ज़ल के लिए शुभकामनाएँ, शिज्जू भाई..

Comment by shree suneel on June 7, 2015 at 12:27pm
वो मेरे सामने आने पे मुस्कुरा न सके
नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके.. ख़ूब
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय. बधाई आपको.
Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2015 at 4:04pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 2:04pm

वही बातें मेरे होते वो दोहरा न सके....१२१२ यहाँ पर समझ नहीं आया,हर शेर उम्दा   इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:30am

आदरणीय शिज्जु भाई , आपकी एक और खूबसूरत गज़ल पढ़्ने मिली , आपको हार्दिक बधाइयाँ । 

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 12:13am

बहुत बेहतरीन ग़ज़ल , दिली दाद क़बूल करें आदरणीय शिज्जू शकूर जी.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 4, 2015 at 3:08pm

आदरणीय शिज्जू जी बधाई स्वीकार करें ...उम्दा ....

हर एक सम्त से नज़रें उठीं हमारी तरफ

कि कहते कहते भी वो हालेदिल सुना न सके 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2015 at 2:21pm

वाह वाह आ. शिज्जू भाई ..बहुत ख़ूब 

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2015 at 1:25pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ..

दो मिसरों पर इस्लाह मिल ही गयी है ... अलिफ़ वस्ल से बहर तो सही है मगर अटकाव है तो उसे भी बदलना उचित होगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
18 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
19 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service