मुलाकात......
आजकल ग़मों में भी
बरसात कहाँ हो पाती है
सब से हो जाती है
पर खुद से बात कहाँ हो पाती है
फुर्सत ही नहीं इस तेज रफ्तार
जिन्दगी की राहों में
कि रुक कर
खुद से चंद लम्हे बात करें
कोई नहीं होता
जब रात के अँधेरे में
कैद से रिहा होते
अँधेरे से सवेरे में
बावजूद अकेला होने के
पलक कहाँ सो पाती है
दिल के निहाँखाने से
कहाँ ख़ुद की रिहाई हो पाती है
धीरे धीरे ज़िंदगी
कहीं गर्द में खो जाती है
बंद होते ही सांस के
ख़ुदा से तो बात हो जाती है
पर लाख कोशिशों के बाद भी
जीते जी
कहाँ खुद से
मुलाकात हो पाती है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय maharshi tripathi- रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' - रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
कहीं गर्द में खो जाती है
बंद होते ही सांस के
ख़ुदा से तो बात हो जाती है
पर लाख कोशिशों के बाद भी
जीते जी
कहाँ खुद से
मुलाकात हो पाती है,,,,,,वाह ! उम्दा पंक्तियाँ आ. Sushil Sarna जी ,,,आपको सादर बधाई |
आदरणीय सुशील जी क्या सुंदर लिखा है ...
ख़ुदा से तो बात हो जाती है पर लाख कोशिशों के बाद भी
जीते जी कहाँ खुद से मुलाकात हो पाती है...
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव - रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri - रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
बढ़िया है सरना जी , सादर .
सुंदर रचना हुयी है आदरणीय सुशील जी हार्दिक बधाई!
आदरणीय समर कबीर जी,आदाब - रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
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