सभा कक्ष में सन्नाटा था , औचक़ मीटिंग बुलाई गयी थी । सभी कयास लगा रहे थे कि क्या वज़ह हो सकती है इसकी । इतने में जिलाधिकारी महोदय ने प्रवेश किया , पीछे पीछे मुख्य विकास अधिकारी और अन्य अधिकारीगण भी अंदर आये । बिना समय जाया किया जिलाधिकारी साहब मुद्दे पर आ गए ।
" अभी अभी मुख्यमंत्री सचिवालय से फोन आया है कि मुख्यमंत्री महोदय परसों पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण के लिए अपने जिले में आ रहे हैं । किस जगह पर ये कार्यक्रम करवाना ठीक रहेगा , आप लोग अपनी राय दें "।
अभी उनकी बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि एक अधिकारी खड़े हो गए " सर पिछली बार भी तो हुआ था वृक्षारोपण कार्यक्रम अपने कार्यालय के पास , वहीँ करवा देते हैं "।
" नहीं , वहां नहीं , पिछली बार लगाये गए पेड़ तो सूख गए हैं । अगर उन्होंने पूछ लिया तो , हम रिस्क नहीं ले सकते ", जिला विकास अधिकारी साहब ने तुरंत टोका ।
" तो ठीक है, कोई और जगह बताईये , लेकिन जगह ऐसी हो जहाँ आसानी से जा सकें उनको लेकर और रास्ता भी बढ़िया हो ", मुख्य विकास अधिकारी साहब के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई पड़ रही थी ।
थोड़ी देर शांति रही , फिर एक कनिष्ठ अधिकारी खड़े हुए और गला खँखारते हुए बोले " सर अगर बुरा न मानें तो मैं कुछ कहूँ "।
" कहिये ", सक्षिप्त उत्तर आया जिलाधिकारी साहब का ।
" क्यों न हम उनको अपने आदर्श ग्राम में ले चलें , बिलकुल शहर से सटा हुआ है और वहाँ हेलीकाप्टर भी उतर सकता है । पिछले मुख्यमंत्री महोदय तो सीधे वहां हेलिकॉप्टर से ही चले गए थे , सड़क वगैरह के झंझट से भी मुक्ति मिल जाएगी । पेड़ तो चाहे जितने लगा लेंगे वहाँ पर "।
मुख्य विकास अधिकारी के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी , उन्होंने जिलाधिकारी महोदय की ओर देखा । उनका चेहरा भी संतुष्ट लग रहा था ।
" तो ठीक है , वही जगह उचित रहेगी । आप तुरंत वहां जाकर देख लीजिये और हेलीकॉप्टर उतरने की जगह भी ठीक करा दीजिये ", जिलाधिकारी साहब ने मुख्य विकास अधिकारी को सम्बोधित करते हुए कहा और उठ गए । सारे लोग उठ खड़े हुए और उनके पीछे पीछे निकल गए ।
मुख्य विकास अधिकारी ने उस कनिष्ठ अफ़सर को बुलाया और अपने कक्ष में चले गए । थोड़ी देर बाद उनकी गाड़ी आदर्श ग्राम की ओर चल पड़ी । रास्ते भर कार्यक्रम के बारे में बात होती रही और वो अफ़सर सब नोट करता गया । गाँव पहुँच कर मुख्य विकास अधिकारी को राहत मिली , जगह ठीक थी और आबादी भी बहुत पिछड़े लोगों की नहीं थी । पेड़ लगाने की जगह का चुनाव किया उन्होंने और फोन पर जिलाधिकारी महोदय को सूचित कर दिया । फिर वो लोग उस जगह की तरफ़ चले जहाँ हेलीकॉप्टर को उतरना था । रास्ता ठीक ठाक था लेकिन कुछ पेड़ ऐसे थे जिनकी डालियाँ रास्ते में आ रहीं थीं । उन्होंने गाड़ी रुकवाई और उतर कर देखने लगे , अफ़सर को बात समझ में आ गयी । उसने उनको आश्वस्त कर दिया कि इनकी छंटाई करवा दी जाएगी और रास्ता साफ़ रहेगा । मुख्य विकास अधिकारी संतुष्ट हो गए और फिर वो लोग वापस कार्यालय चल दिए ।
दफ्तर पहुँच कर वो जिलाधिकारी महोदय के कक्ष में गए और स्थिति की जानकारी दी । अब सारे कार्यक्रम की रुपरेखा फाइनल होने लगी और कुछ ही देर में तमाम अधिकारियों और ठेकेदारों को काम पर लगा दिया गया । गाँव की साफ़ सफाई के लिए टीम तैयार हो गयी और उस अफ़सर के नेतृत्व में टीम गॉँव की ओर चल पड़ी । इधर गाँव में सफाई जोरों पर थी और दूसरी तरफ़ वो अफ़सर एक ठेकेदार के साथ पेड़ों के पास पहुँचा । डालियों की छँटाई की बात सुनते ही ठेकेदार ने अफ़सर को धीरे से समझाया " अरे साहब , क्या छँटाई करना , पेड़ ही कटवा देता हूँ । रास्ता भी साफ़ हो जायेगा और लकड़ियाँ भी मिल जाएँगी "। बात उनकी समझ में आ गयी लेकिन हिदायत देते हुए बोले " देखो , पता नहीं चले कि यहाँ कोई पेड़ भी था , बाक़ी ईमानदारी से लकड़ियाँ हमारे यहाँ पहुँचवा देना "।
अगले दिन रात होते होते गाँव चमक गया था , हेलिपैड से गाँव पहुँचने का रास्ता एकदम साफ़ था और उस रास्ते में पड़ने वाले दो पेड़ सफाई से काट दिए गए थे । फिर वृक्षारोपण का कार्यक्रम भी सकुशल संपन्न हो गया और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक और क़दम बढ़ा दिया गया ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी | आपने सच ही कहा , एकरसता आ गयी है , आगे और बेहतर प्रयास होगा | सादर.
आपकी कहानी को अपनी एक ग़ज़ल का मतला नज़्र करना चाहूँगा भाईजी -
दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं
वैसे आपकी कहानी में कई जगह एकरसता आ गयी है. इसका कारण कथ्य के विन्दु और अंत सब पहचानी दिशा में चलते हुए मिलते गये.
आपके इस सचेष्ट प्रयास के लिए हार्दिक बधाई.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..
सुंदर कहिन इहे त होत है भाई साहब |पोल खोलिन खातिर कहानी पर बधाई |
बहुत बहुत आभार डॉ आशुतोष मिश्रा जी .
आदरणीय विनय जी ..बहुत ही जबद्र्दस्त प्रभाव छोड़ने में सफल रही है आपकी यह रचना ..इस के लिए आपको ढेर सारी बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मोहन जान गोरखपुरी जी , जमीनी हक़ीक़त यही है..
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी , चार शब्दों में आपने सार बता दिया..
भाई विनय ज़ी पर्यावरण दिवस पे होने वाले खोखले समारोह की पोल आपने इस कथा के माध्यम से बेहतरीन तरके से खोली है..बहुत बहुत बधाई,आज कल की जमीनी हकीकत यही है सरकारी कार्यक्रमों की!
पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ....दो लगाओ दस काटो ....बधाई
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