For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ;रिश्तों में जो थीं.. /श्री सुनील

2212 2122 2212

रिश्तों में जो थी दरारें, भरने लगीं
पहले सा मैं, आप तब सी लगने लगीं.

चुप्पी सी थी इक ख़ला सा था बीच में
उम्मीद की वां शुआऐं दिखने लगीं.

अब ये जहाँ तेरी ज़़द में लगता है, लो!
आँचल में तेरे फ़िज़ाऐं छुपने लगीं.

जब फ़ासलों में पड़ीं थोड़ी सिलबटें
ये क़ुर्बतें अपनी सब को खलने लगीं.

तू मेरी होगी, यकीं ये था क्योंकि इन
हाँथो में तुम सी लकीरें बनने लगीं.

किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो वां
पहलू से अब यां बलायेें टलने लगीं.


मौलिक व अप्रकाशित

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on June 25, 2015 at 6:34pm
ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथलेश वामनकर सर जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:07am

आदरणीय सुनील जी बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर 

Comment by shree suneel on June 14, 2015 at 9:01am
ग़ज़ल पसंदगी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी. सादर.
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 10:46pm

आ० भाई श्री सुनील जी! बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब! मतले पर अलग से दाद प्रेषित है!खूबसूरत गज़ल हार्दिक बधाइयाँ!

Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 9:00pm
ग़ज़ल में शिर्कत व सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 1:32pm

आदरनीय श्री सुनील भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 11:46am
ग़ज़ल में शिर्कत व सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई नरेंद्र जी.
Comment by narendrasinh chauhan on June 11, 2015 at 11:18am

किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो वां
पहलू से अब यां बलायेें टलने लगीं. बहुत खूब

Comment by shree suneel on June 10, 2015 at 11:20pm
ग़ज़ल पे उपस्थिति और सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुनील प्रसाद जी. जहां त्रुटियां थीं उसे स्पष्ट करते तो अच्छा होता. सादर.
Comment by shree suneel on June 10, 2015 at 11:07pm
धन्यवाद आदरणीय राहुल दांगी जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service