रमल मुरब्बा सालिम
2122 2122
क्या ज़माने आ गये हैं ?
बेशरम शर्मा गये हैं I
था भरोसा बहुत उनका
वे मगर उकता गये हैं I
पोंछ लें आंसू कृषक अब
स्वर्ण वे बरसा गये हैं I
देखकर अंदाज तेरे
हौसले मुरझा गये है I
लाजिम है हो नशा भी
जाम जब टकरा गये हैं I
भौंकते थे जो कभी वह
महफ़िलों में छा गये है I
एक झटका था जरा सा
देश तक भहरा गये हैं I
मर रह ही है देव नदियाँ
सिन्धु सब घबरा गये है I
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० वामनकर जी
आप हौसला भी बढाए और मार्ग दर्शन भी करें , सादर .
वाह सर अभ्यास अभ्यास में बढ़िया और बेहतरीन ग़ज़ल
अब आपकी ग़ज़लों में अनुभव का कमाल आने लगा है
आपकी लगन को नमन
और इस कमाल की ग़ज़ल पर ढेर सारी दाद
युवा गज़लकार का ग़ज़ल संग्रह बनना आरम्भ हो गया है
प्रिय कृष्णा
आपका बहुत आभार .
शानदार गज़ल!अभिनन्दन आ० गोपाल सर!
आ० समर कबीर साहिब
आपका शुक्रिया . सादर .
आ० विनय जी
आपका सादर आभार .
आ० केवल भाई
आभार प्रिय .
आ० निकोर जी
सादर चरण स्पर्श और आभार.
आ0 गोपाल भाई जी, गज़ल की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारे. सादर
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