रमल मुरब्बा सालिम
2122 2122
क्या ज़माने आ गये हैं ?
बेशरम शर्मा गये हैं I
था भरोसा बहुत उनका
वे मगर उकता गये हैं I
पोंछ लें आंसू कृषक अब
स्वर्ण वे बरसा गये हैं I
देखकर अंदाज तेरे
हौसले मुरझा गये है I
लाजिम है हो नशा भी
जाम जब टकरा गये हैं I
भौंकते थे जो कभी वह
महफ़िलों में छा गये है I
एक झटका था जरा सा
देश तक भहरा गये हैं I
मर रह ही है देव नदियाँ
सिन्धु सब घबरा गये है I
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
बहुत उम्दा प्रयास आ. डॉ साहब..
बे-शर्म ..सही होगा ..२२१ बाक़ी आ. गिरिराज जी कह ही चुके हैं..
वीनस जी से सहमत हूँ..
इस प्रयास के लिए बधाई
आदरणीय, सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई
पोंछ लें आं/ सू कृषक अब
पोंछ २१ लें २ आं २ / सू २ कृषक १२ अब २ = २१२२ / २१२२
इस मिसरे में मुझे कोई दिक्कत नहीं दिख रही है
आदरणीय बड़े भाई , छोटी बहर मे आपने ग़ज़ल खूब कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । कुछ शे र शब्दों की वर्तनी गज़ल ले लेने से बे बहर हो गये हैं ----
1- था भरोसा / बहुत उनका 2122 / 1222 बहुत 12 था बहुत उनका भरोसा - किया जा सकता है
2- पोंछ लें आं/ सू कृषक अब 2122 / 1222 कृषक 12 अब कृषक लें पोछ आँसू - किया जा सकता है
3- लाजिम है हो / नशा भी 22 12 , या 22 11 या 2221 / 122 लाजिम को 22 ही लेना पड़ेगा है या हो की मात्रा गिरायी जा सकती है , जहाँ ज़रूरत हो । अब नशा हो , है ज़रूरी - किया जा सकता है । सादर !
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