2122-1122-22.
अपनी मंज़िल की जो हसरत करना
घर से चलने की भी हिम्मत करना
.
कोई तुझको जो अमानत सौंपे
जान देकर भी हिफ़ाजत करना
.
कहना आसान है करना मुश्किल
दुश्मनों से भी मुहब्बत करना
.
आज बचपन में है वो बात कहाँ
वक़्त बे-वक़्त शरारत करना
.
तेरे भीतर का ख़ुदा जाग उठे
इतनी शिद्दत से इबादत करना
.
सिर्फ कहने को ही तेरा न हो वो
उसके दुख दर्द में शिरक़त करना
.
फ़र्ज़ औलाद का यह होता 'दिनेश'
अपने माँ बाप की ख़िदमत करना
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हौसला अफ़्ज़ाई करने के लिए शुक्रिया आ. गोपाल सर जी.
मैं भी अभी नौसिखिया हूँ . गुणीजन ही बता सकते हैं .
हौसला अफ़्ज़ाई करने के लिए शुक्रिया आ. सुशील जी.
सराहना के लिए शुक्रिया आ. सुनील प्रसाद जी .
कई जगह मात्राएं गिरा कर पढ़ने की कोशिश की है, सर. गुणीजन ही सही या गलत बता सकते हैं सर .
दिनेश भाई
गजल बेशक अच्छी है . बह्र के मामले में मुझे भी कुछ संदेह है , देखे गुनीजन क्या कहते हैं !
अपनी मंज़िल की जो हसरत करना
घर से चलने की भी हिम्मत करना
कोई तुझको जो अमानत सौंपे
जान देकर भी हिफ़ाजत करना
वाह .... बहुत खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में आदरणीय। हार्दिक बधाई।
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