For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- कश्तियाँ बरसात में

2122-2122-2122-212

.

मुस्कुरा कर कह रही कुछ झुर्रियाँ बरसात में
देखीं थीं हमने कभी रंगीनियाँ बरसात में
.
आज का बचपन न जाने कौन सी चिन्ता में गुम
अब नहीं कागज़ की दिखतीं कश्तियाँ बरसात में
.
ज़ेह्न में रच बस गया है अब तो उनका ज़ायका
माँ खिलाती थी हमें जो पूरियाँ बरसात में
.
आज घर में शाम को चूल्हा जलेगा किस तरह
कह रही मजदूर की मजबूरियाँ बरसात में
.
मेरे घर की छत गिरी थी या गिरा था आसमाँ
जो हुईं उस रात थीं दुश्वारियाँ बरसात में
.
मौलिक व अप्रकाशित .

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 1:02am

वाह वाह ! दाद कुबूल कीजियेभाईजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 10:15pm

आदरणीय दिनेश भाई जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है.

दिल से दाद हाज़िर है....

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 19, 2015 at 9:15pm

आज घर में शाम को चूल्हा जलेगा किस तरह

कह रही मजदूर की मजबूरियाँ बरसात में

बेहतरीन दिनेश सर!हर शेर बेहतरीन! ढेरों दाद!

Comment by shree suneel on June 18, 2015 at 10:30pm
मुस्कुरा कर कह रही कुछ झुर्रियाँ बरसात में
देखीं थीं हमने कभी रंगीनियाँ बरसात में... क्या बात है!
बधाइयाँ.. बधाइयाँ.. आपको आदरणीय.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 3:06pm

आदरणीय दिनेह भाव्व , लाजवाब ग्ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:43pm

वाह वा दिनेश साहब .. मुरस्सा ग़ज़ल हुई है ... ढेरो दाद

Comment by Samar kabeer on June 17, 2015 at 11:22pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,बहुत ही अच्छी और मुकम्मल ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

मतले के ऊला मिसरे में "रही" को "रहीं" कर लें ।
Comment by Ram Ashery on June 17, 2015 at 7:51pm

सुंदर गजल के लिए सहृदय आपको बधाई हो

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 6:55pm

सुन्दर गज़ल हेतु दाद कुबूल फरमाए. आ0 दिनेश भाई जी. सादर

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 5:45pm
वाह वाह वाह लाजवाब गजल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service