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आदरणीय दिनेश भाई बेहतरीन गज़ल हुई है , हरेक शेर के लिये दिली बधाइयाँ ।
दिनेश अपनी ज़िया पर न तुम ग़ुरूर करो
कि बिन अँधेरे तुम्हारा भी कुछ वुजूद नहीं -- लाजवाब !! हार्दिक बधाई आपको ।
आदरणीय दिनेश कुमार जी ये आप की कोशिश अगर ऐसी है तो आगे मन्ज़र क्या होगा ...मैं तो देख हैरान हूँ कि ऐसा आगाज़ है ....आगे आगे देखिये होता है क्या ...वाह ...थोड़ा शब्दावली हमारे लिये कठिन ज़रुर रही मगर आपने उसमें भी मदद कर दी
आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत ही आला ग़ज़ल पेश की है आपने ....हर अहसास उम्दा !! दाद कबूल कीजियेगा !! साभार !!
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