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जी हाँ तीनो तरह से बाँध सकते हैं
आदरणीय दिनेश जी ..बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ..हर शेर पर दाद क़ुबूल करें ..आदरणीय वीनस जी और गिरिराज भाईसाब की प्रतिक्रियाओं से जानकारी और बेहतर हुई ..रचना पर आपको हार्दिक बधाई के साथ सादर
आदरणीय दिनेश भाई , जैसा कि आ. वीनस भाई जी ने विस्तार से समझा दिया है , आपका मिसरा सही है , ए की मात्रा को उठा कर 1 से 2 किया जा सकता है । मुझे नियम अधूरा याद था । आपकी परेशानी के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ ।
सबसे पहले इस मुरस्सा ग़ज़ल के लिए दिनेश साहब को ढेरो दाद ....
रही बात इज़ाफत की तो
गर्मी-ए-शौक़ की मात्रा २२-१-२१ बनेगी मगर यहाँ मी को गिरा लिया गया है और "ए" की मात्रा को दीर्घ कर लिया गया है
ऐसा करना बिलकुल जाईज़ है और मिसरा बहर के हवाले से बिलकुल दुरुस्त है
मेरे लेख को फिर से देखें तो पायेंगे कि गिरिराज भंडारी जी ने लेख के जिस हिस्से को यहाँ प्रस्तुत किया है, वहां तक मैंने "ए" की मात्रा के छूट अनुसार दीर्घ होने की बात नहीं बताई है ... वह बात इसके आगे बताई गयी है इसलिए प्रस्तुत अंश में ए के दीर्घ होने पर बनने वाले मात्रा भार का जिक्र नहीं किया गया है
लेख में आगे विस्तास से बताया गया है कि ए की मात्रा को दीर्घ अनुसार भी गिन सकते हैं
आगे दो उदाहरण जो लेख में दिए गए हैं उन्हें देखें -
अहल-ए-हिम्मत मंजिल-ए-मक़सूद तक आ ही गये
बन्दा-ए-तकदीर किस्मत का गिला करते रहे - (चकबस्त)
(२१२२, २१२२, २१२२, २१२)
बन्दा-ए-तकदीर = २१ - २ - २२१
इब्तिदा-ए- इश्क है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या - (मीर तकी 'मीर')
(२१२२, २१२२, २१२)
इब्तिदा-ए- इश्क = २१२ - २ - २१
आदरणीय , मेरी जानकारी ओबी ओ मे उपलब्ध जानकारी के आधार पर ही है , कौन कौन बड़ा शायर क्या क्या छूट लिये और वो छूट सही या ग़लत मै नही कह सकता , अगर नीचे लिखे नियम सही है तो आपका मिसरा बेबह्र है , अगर ग़लत है तो आप सही हैं , और मुझे अपनी जानकारी के लिये क्षमा मांगनी चाहिये । लेख सही है या गलत इसका फैसला भी मै नही कर सकता , वो आ. वीनस भाई ही कर सकते हैं ।
आदरणीय , आ. वीनस भाई जी के ग़ज़ल की कक्षा के इस लिंक मे जाकर आप इजाफत को पढ सकते हैं -
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...
एक छोटा सा हिस्सा कापी पेस्ट कर रहा हूँ -
५) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता वह पूर्ववत दीर्घ रहता है और 'ए' को अलग से लिख कर लघु मात्रा गिना जाता है
उदाहरण - 'दीवार का साया' इज़ाफत द्वारा 'सायाए दीवार' हो जाता है इसमें साया २२ पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह पूर्ववत २२ रहता है और 'ए' की लघु मात्रा को अलग से गिनते है अतः सायाए दीवार का वज्न हुआ - २२१ २२१
इसका एक और उदाहरण "शिकवा-ए-गम" है जिसका वज्न २२१ २ है
उदाहरण स्वरूप कुछ और शब्दों का वज्न देख लें
कमाले फन - १२१ २
मकसदे हयात - २११ १२१
दीदाए तर - २२१ २
शहरे लखनऊ - २१ २१२
नग्माए पुरदर्द - २२१ २२१
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