For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल -- 'चलते चलते हम कहाँ तक आ गए ' ( दिनेश कुमार )

२१२२-२१२२-२१२

तीर-ए-अब्रू जब कमाँ तक आ गए
उनकी ज़द में जिस्मो-जाँ तक आ गए
.
तिश्नगी-ए-बे-कराँ तक आ गए
अब्र-ए-तर मेरे मकाँ तक आ गए
.
दाग़ सीरत पर लगे थे और हम
बस्ती-ए-सूरत-गराँ तक आ गए
.
रफ़्ता-रफ़्ता कम हुआ ज़ब्त-ए-अलम
दर्द-ए-जाँ मेरी ज़ुबाँ तक आ गए
.
हम को भी इक गुलबदन की चाह थी
हम भी कू-ए-गुलिस्ताँ तक आ गए
.
मंज़िल-ए-मक़सूद भी दिखने लगी
हम जो मीर-ए-कारवाँ तक आ गए
.
याद आया जब हमें बचपन बहुत
हम खिलौनों की दुकाँ तक आ गए
.
क़ातिलों के पास थी दौलत अपार
उनके हक में हुक्मराँ तक आ गए
.
मौसम-ए-गुल सिर्फ़ यादों में है अब
उम्र गुज़री, हम ख़िज़ाँ तक आ गए
.
साथ अपने अब न कोई हमक़दम
' चलते चलते हम कहाँ तक आ गए '
.
हौसला जिनके परों में था 'दिनेश'
वो परिन्दे आसमाँ तक आ गए
.
.
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 10:36am

बहुत ख़ूब आदरणीय दिनेश जी, ख़ूबसूरत अश’आर से सजी इस ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 7:20pm

वाह्ह्ह  वाह  बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है दिनेश भैया हर शेर लाजबाब हुआ ,दिल से दाद कुबूलें. 

Comment by vijay nikore on August 18, 2015 at 1:09pm

 बहुत आनन्द आया आपकी गज़ल पढ़ कर। बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:36am

क़ातिलों के पास थी दौलत अपार
उनके हक में हुक्मराँ तक आ गए
आ0 भाई दिनेश जी, बहुत सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on August 17, 2015 at 3:10pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने सुनकर दिल बाग़ बाग़ हो गया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 12:29pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by Ravi Shukla on August 17, 2015 at 10:43am

आदरणीय दिनेश जी

शानदार ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें । शेर दर शेर क्‍या रवानी है ग़जल में ।

तिश्नगी-ए-बे-कराँ तक आ गए
अब्र-ए-तर मेरे मकाँ तक आ गए... तिश्‍नगी और अब्र पर सकारात्‍मक बयान बहुत खूब

रफ़्ता-रफ़्ता कम हुआ ज़ब्त-ए-अलम
दर्द-ए-जाँ मेरी ज़ुबाँ तक आ गए......हकीकत है दिनेश जी जब्‍त की भी एक हद होती है

याद आया जब हमें बचपन बहुत
हम खिलौनों की दुकाँ तक आ गए..... बचपन को बयां करता शेर, आपका अपना अंदाज

साथ अपने अब न कोई हमक़दम
' चलते चलते हम कहाँ तक आ गए '  शायद मीर ए कारवां  तक  आने का प्रतिफल है ये कि हम कदम अब कोई नहीं है  : - )


हौसला जिनके परों में था 'दिनेश'
वो परिन्दे आसमाँ तक आ गए  .... इस भाव पर बहुत शेर कहे गये है इसलिये इस पर केवल शुक्रिया ।  पूरी ग़ज़ल पर दिली दाद कुबूल करें दिनेश जी । आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service