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बदगुमानी ( लघुकथा )

" बहुत गुमान था तुमको सृजन पर , देखो मेरी ताक़त ", विनाश इतरा रहा था । पूरा इलाका तबाह हो गया था , दूर दूर तक कहीं जीवन का कोई नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था ।
लेकिन श्रृष्टि अभी भी मुस्कुरा रही थी " तुमने शायद पीछे मुड़ कर नहीं देखा "।
विनाश ने पलट कर देखा , उसका दर्प चूर चूर हो गया ।
एक नन्हीं सी कोंपल सृजन की विजय पताका फहरा रही थी , जीवन पुनः जीत गया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 10:32pm

विनाश और सृजन सापेक्ष होते हैं..  लघुकथा के लिए शुभकामनाएँ

Comment by विनय कुमार on June 18, 2015 at 4:06pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेयजी , सादर आभार.

Comment by Shubhranshu Pandey on June 18, 2015 at 2:31pm

आदरणीय विनय जी, 

एक विस्फ़ोट हुआ था और ये ब्र्म्हाण्ड बना था. विनाश के बाद सृजन ये प्रकृति का नियम है.

विनाश के दर्प को चूर चूर करती एक सुन्दर लघुकथा. 

सादर.

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 11:52pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय शशी बंशल जी..

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 11:51pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी..

Comment by shashi bansal goyal on June 14, 2015 at 11:34pm
बहुत ही सुन्दर और सार्थक लघुकथा हुई है आद0 विनय सिंह जी ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 11:19pm

बहुत ही सुन्दर!हार्दिक बधाई आ० विनय सर!

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 12:22pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी , आपका अनुमोदन मिलता है तो प्रसन्नता होती है..

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 12:20pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी ..

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