१२२ १२२ १२२ १२
मिला कीमती वक़्त जाया न कर
बुरी बात होंठों पे लाया न कर
बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट
तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर
कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़
किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर
अदब से कहेगा सुनेंगे सभी
सुलगती जुबाँ से सुनाया न कर
तवा गर्म है सब्र से काम ले
इन हाथों को अपने जलाया न कर
सही है अगर तू दिखा तो सबूत
हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर
सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा
कोई बात दिल में छुपाया न कर
बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर
बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो
उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर
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Comment
आ० समर कबीर भाई जी ,शब्द का अर्थ समझाने के लिए हार्दिक धन्यवाद | उर्दू के या हिन्दी के बहुत से ऐसे शब्द हैं जो आम भाषा में दूसरी तरह प्रचलित हो गए हैं जैसे तजुर्बा ,शहर आदि ऐसे हजारों हैं हम हिंदी भाषी ग़ज़लों में प्रचलित शब्दों का प्रयोग अधिक करते हैं |पूर्णतः उर्दू ग़ज़ल हो तो आपकी बात सौ प्रतिशत सही है ज़ाया शब्द बहुत प्रचलित है कई शब्द कोष में भी अर्थ देखा कई बड़े ग़ज़लकारों ने इस शब्द का प्रयोग अपनी ग़ज़लों में किया जैसे --मीर तकी मीर की ग़ज़ल का एक मिसरा देखिये -काम हुए हैं सारे ज़ाया, हर साअत की समाजत से
इस्तिग़्ना की चौगुनी उसने, ज्यूं-ज्यूं मैं इबराम किया
ये हो नहीं और भी कई ग़ज़लों के उदाहरण हैं मेरे पास ---मैं आपकी बात को नकार नहीं रही आप उर्दू के जानकार हैं किन्तु ये शब्द बचपन से सुनती आ रही हूँ तथा बड़े शयिरों की ग़ज़लों में देखा है तभी ये लिखने की हिम्मत की |
आ० समर कबीर भाई जी ,आदाब ..आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आपने सही इंगित किया जाया शब्द में नुक्ता लगाना भूल गई ज़ाया = बर्बाद अर्थात मिला कीमती वक़्त बर्बाद न कर...इस भाव से लिखा है
कई बार हिंदी कन्वर्टर से गड़बड़ हो जाती है इसे ठीक कर लूँगी आपका बहुत बहत आभार |
आ० कांता रॉय जी,बहुत बहुत आभार आपका
आ० सुशील सरना जी,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी दिल से बहुत बहुत आभार |
अदब से कहेगा सुनेंगे सभी
सुलगती जुबाँ से सुनाया न कर
बहुत खूब .... सच को दर्शाते खूबसूरत अशआर … इस ग़ज़ल पर दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय राजेश कुमारी जी।
हर शेर बेहतरीन,बहुत ही लाजवाब गजल हुयी है आदरणीया!नमन!
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