For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पत्थर-दिल पूँजी

के दिल पर

मार हथौड़ा

टूटे पत्थर

 

कितनी सारी धरती पर

इसका जायज़ नाजायज़ कब्ज़ा

विषधर इसके नीचे पलते

किन्तु न उगने देता सब्ज़ा

 

अगर टूट जाता टुकड़ों में

बन जाते

मज़लूमों के घर

 

मौसम अच्छा हो कि बुरा हो

इस पर कोई फ़र्क न पड़ता

चोटी पर हो या खाई में

आसानी से नहीं उखड़ता

 

उखड़ गया तो

कितने ही मर जाते

इसकी ज़द में आकर

 

छूट मिली इसको तो

सारी हरियाली ये खा जाएगा

नाज़ुक पौधों की कब्रों पर

राजमहल ये बनवाएगा

 

रोको इसको

वरना इक दिन

सारी धरती होगी बंजर

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 3:09am

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी,

बहुत ही बढ़िया नवगीत हुआ है 

इसकी गेयता तो सुन्दर है ही लेकिन शब्द भी खनखना रहे है 

निराला की परंपरा में जो रचनाये लिखी गई आपकी रचना उसी स्तर और परंपरा की है 

बाकि सौरभ सर ने इतनी बेहतरीन समीक्षा की है कि मेरे पास और कुछ अतिरिक्त कहने के लिए नहीं है 

हाँ एक बात नवगीत में यह प्रयोग सफल दिखाई दे रहा है इसलिए मैं भी प्रयास करता हूँ 

आपको इस सफल प्रयोग और बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई और आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2015 at 2:34am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, यह भी महान आश्चर्य है कि इस माह की १३ तारीख को प्रस्तुत हुई रचना पर २४ तारीख तक एक प्रतिक्रिया नहीं आयी है ! दो बातें हो सकती हैं, या तो रचना का स्तर प्रतिक्रिया लायक नहीं है, या, रचना को समझने वाले कायदे से पाठक इस मंच पर नहीं हैं.
कहना न होगा, दूसरा कारण समीचीन हैं. यह सक्रिय पाठकों के पाठकत्व में व्याप गये महान असंतुलन का परिचायक है. खैर.. इस पर अभी अधिक कुछ कहना उचित नहीं है.

वैसे, आप भी, आ. धर्मेन्द्रजी, एक पाठक के तौर पर ’चले है नदी के किनारे-किनारे’ वाली आदत के और शैली के दोषी हैं.

आपको नवगीत पर प्रयासरत होते देखना भला लगा है. आपके नवगीत का पत्थर लगातार बढ़ता हुआ ’पत्थर’, या, कहिये ’चट्टान’ है. इसके माध्यम से पूँजीपतियो का बिम्ब रोचकता से काढ़ा गया है. यह अभिनव प्रयोग रोचक है. आगे, बन्द में बुर्ज़ुआ वर्ग के विरुद्ध पानी पी-पी कर कोंसने का काम हुआ है, जिसकी भावदशा में हालाँकि वही-वहीपन तारी है. अलबत्ता, कथ्य और प्रस्तुतीकरण कई जगह प्रभावित करता हुआ बन पड़ा है.

कितनी सारी धरती पर
इसका जायज़ नाजायज़ कब्ज़ा
विषधर इसके नीचे पलते
किन्तु न उगने देता सब्ज़ा

अगर टूट जाता टुकड़ों में
बन जाते
मज़लूमों के घर................... इस पूरे बन्द में कई इंगित हैं और सभी प्रभावित करते हैं. बढिया प्रयास हुआ है आदरणीय.

छूट मिली इसको तो
सारी हरियाली ये खा जाएगा
नाज़ुक पौधों की कब्रों पर
राजमहल ये बनवाएगा

रोको इसको
वरना इक दिन
सारी धरती होगी बंजर.................... पूँजीवद या बाज़ारवाद को नकारा नहीं जा सकता. कोई वर्ग लाख गरिया ले, किन्तु इनको रोकना असम्भव है. हाँ, इसके दुष्परिणामों पर चर्चा न हो यह तो साहित्यिक ही नहीं मानवता के विरुद्ध भी घोर असंवेदनशीलता का द्योतक होगा. उस हिसाब से यह बन्द आत्मीय संतोष देता है. हम विवश हुए ’धरती को बंजर’ होता हुआ देख रहे हैं.   

नवगीत विधा पर इस प्रयास केलिए साधुवाद एवं हार्दिक शुभेच्छाएँ.
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service