२१२२/१२१२/२२ (११२)
लोग समझे कि शाइरी होगी
बात तो सिर्फ़ आप की होगी
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रोज़ साहिल पे आ के रुकती है
शाम की कोई बे-बसी होगी
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तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को
ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.
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अपने जादू से जीत लेती है
ये कज़ा भी कोई परी होगी.
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ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.
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मेरे दर पे ख़ुशी है आने को
आती होगी!! कहीं रुकी होगी.
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दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं
दिल में यादों की चाशनी होगी.
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जिस गली में ठिठक रहे हैं क़दम
वो गली यार की गली होगी.
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इश्क़ दुनिया से तो छुपाए रखा
फिर भी कोई नज़र लगी होगी
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आप की बात मान लेता हूँ
आप कहते हैं तो सही होगी.
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शह्र लड़ने लगा है जिस पे तमाम
बात पहले वो आपसी होगी.
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हश्र पर साथ कुछ नहीं होगा
सिर्फ़ कर्मों की पोटली होगी.
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‘नूर’ आँखों से सुर्खियाँ लेकर
मेहंदी उनकी बहुत रची होगी.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद
शुक्रिया आ. समर कबीर साहब... आप ने बहुत महीन बात समझाई है ..
दरअसल मैंने शुरू में यूँ कहा था
"इस गली में ठिठक रहे हैं क़दम
ये गली यार की गली होगी"....... लेकिन न जाने क्यूँ ..फिर ख़ुद ही उलझ गया ...
आप ने ध्यान दिलाया तो मूल प्रति में अभी सुधार किये लेता हूँ
सादर
शुक्रिया आ. जान साहब
शुक्रिया आ. मनोज जी
शुक्रिया आ. डॉ श्रीवास्तव सर
ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.
वाह आ० nilesh सर! सुन्दर गजल हुयी है! बधाई!
पुरनूर कोहेनूर आदरणीय नूर
कुछ हमें भी सिखाएं शऊर
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