For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल---दिल है जो तेरा आशिक उसकी खता नहीं है ।।

२२१ २१२२ २२१ २१२२

हूँ जो नशे में धुत मैं मय का नशा नहीं है।
यह इब्तिदा-ए-उल्फत है इन्तिहा नहीं है ।।

किस ओर जाके खोले बोतल शराब की ये।
उनकी गली से अब तक हम आशना नहीं है ।।

ऐसा करूं मैं क्या जो तू खुद गले लगा ले।
तू ही बता दे मुझको, मुझको पता नहीं है ।।

है मय ये तेरी आँखें सावन है तेरी जुल्फे।
दिल है जो तेरा आशिक उसकी खता नहीं है ।।

हर रोज सोचता हूँ कह दूँ मैं आज उनसे।
अब प्यार तो बहुत है पर हौसला नहीं है ।।

ताउम्र काट दे जो इक नाम के सहारे।
अब आशिको में 'राहुल' ऐसी वफा नहीं है ।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 7:24pm
आदरणीय kanta roy जी शुक्रिया
Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:20pm

ताउम्र काट दे जो इक नाम के सहारे।
अब आशिको में 'राहुल' ऐसी वफा नहीं है ,,दिली दाद कुबुलें आ. Rahul Dangi जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:03pm

आ० राहुल जी

  आपकी  गजल के कुछ शेर तो कमाल के है . सादर .  

Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 3:05pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"किस ओर जाके पीये दिल खोलकर ये बोतल
कू-ए-यार से अभी तक हम आशना नहीं है"

इस शैर के बारे में जनाब वीनस जी बता ही चुके हैं,अगर इसे इस तरह कर लें तो उचित होगा :-

"किस ओर जाके पीलें दिल खोल कर ये बोतल
उस राह से अभी तक दिल आशना नहीं है"

"ऐसा करूं मैं क्या जो तू खुद गले लगा ले
तू ही बता दे मुझको, मुझको पता नहीं है"

इस शैर के सानी मिसरे में "मुझको-मुझको" की तकरार अच्छी नहीं लगती,सानी मिसरा इस तरह कर लें तो बयान साफ़ हो जाएगा :-

"ये बात तू बता दे ,मुझको पता नहीं है"

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:54pm

वाह राहुल साहब शानदार ग़ज़ल से मंच को नवाज़ा है ...
ढेरो दाद


किस ओर जाके पीये दिल खोलकर ये बोतल।..........सही उच्चारण पिये  १२ होता है 
कू-ए-यार से अभी तक हम आशना नहीं है ।। ..........कू-ए-यार का वज्न २१२१ या २२२१ होता है

Comment by kanta roy on June 18, 2015 at 12:04pm
हर रोज सोचता हूँ कह दूँ मैं आज उनसे।
अब प्यार तो बहुत है पर हौसला नहीं है ।....... बहुत खूब शेर कही है आपने आदरणीय आदरणीय राहुल दांगी जी .... बधाई आपको इस खूबसूरत गजल के लिए
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 11:25am
आदरणीय narendrasinh chauhan जी शुक्रिया
Comment by narendrasinh chauhan on June 18, 2015 at 11:21am

लाजवाब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
16 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service