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फ़लक पे जो मुझे अक्सर दिखाई देता है
वो आम लोगों में तनकर दिखाई देता है
अभी हैं बदलियाँ चारों तरफ से घेरी हुईं
तभी तो चाँद भी बदतर दिखाई देता है
जो तोप ले के चले साथ अपनें , वो हमको
कहें हैं हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है
निजाम के कहीं साजिश का मारा वो भी न हो
जो रात दिन अभी घर पर दिखाई देता है
पलट न दें कहीं आकाश ये सताये हुये
हरेक हाथ में पत्थर दिखाई देता है
वो छाँव बरगदी में खूब खेलते बच्चे
कहाँ , कहीं पे ये मंज़र दिखाई देता है
बहुत क़रीब से देखो न मेरे दागों को
रहेगा इंच वो गज भर दिखाई देता है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
// पलट न दें कहीं आकाश ये सताये हुये
हरेक हाथ में पत्थर दिखाई देता है // , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई आदरणीय.
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