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अँधेरों के मित्रो, हवा दीजिये
मै जलता दिया हूँ बुझा दीजिये
लिये आइना सब से मिलता रहा
सभी अब मुझे बद्दुआ दीजिये
हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया
हमे जुगनुओं का पता दीजिये
पुकारा था हमने उसे बार बार
न कहना उसे फिर सदा दीजिये
मेरी बातें कब राज होने लगीं
जिसे आप चाहें बता दीजिये
मेरे आबला खुश हुये देख कर
कहूँ क्यूँ ? मै पत्थर हटा दीजिये
भुला कर ख़ुदी को मिला सबसे मैं
मुझे आज मुझसे मिला दीजिये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विनय कुमार भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
आदरणीय सौरभ भाई , उत्सह वर्धन के लिये आपका आभार , आपकी उपस्थिति से गज़ल पूर्ण हुई । मित्रों हो मित्रो कर रहा हूँ । आभार
// मेरी बातें कब राज होने लगीं
जिसे आप चाहें बता दीजिये।// , वाह , वाह । कमाल की ग़ज़ल है आदरणीय , दिली दाद क़ुबूल करें आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..
हमारा यकीं चाँद से उठ गया
हमें जुगनुओं का पता दीजिये
वाह !
आदरणीय कमाल है !
मतले में मित्रों को मित्रो कर लें
आदरणीया परि एम श्लोक जी , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।
आदरणीय मोहन भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय राहुल भाई , आपका बहुत आभार
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