For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फिल बदीह -- मुझमें पैठा हुआ कोई डर ज़िन्दगी ( गिरिराज भंडारी )

212       212       212        212

के छू तो कभी बामो दर ज़िन्दगी

मुझमें पैठा हुआ कोई डर ज़िन्दगी

 

क्यों तू नारा है इस क़दर ज़िंदगी

क्या मैं इतना लगा पुरखतर , ज़िन्दगी ?

आँधियाँ ग़म की आयें , चलो ठीक है

तेज़  लेकिन न हों  इस क़दर ज़िन्दगी

 

तू कभी मावसी रात में , चाँदनी

गर बने तो इधर भी बिखर ज़िन्दगी

 

ले जिया माहो ख़ुर्शीद से दो घड़ी

कुछ समय के लिये तो निखर ज़िन्दगी

 

वक़्त ने काटे थे जो मेरे बालो पर

तू ही लौटा दे वो बालो पर ज़िन्दगी

 

एक दिन की हँसी को सँजो ले कहीं

फिर तो रोयेगी तू साल भर ज़िन्दगी

 

किस क़दर थी खुशी उन फज़ाओं में कल

फिर उसी राह से तू गुज़र ज़िन्दगी

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 5:47am

आदरणीय सौरभ भाई , आपको तो मालूम है , इस गज़ल ( दाल ) में  कोई भी छौंक नहीं है , सादी दाल है , जैसी की वैसी । ये गज़ल लिख गई है , कहीं कोई प्रयास नहीं है । इसीलिये शायद कुछ फीकी रह गई । देखूँगा कुछ सोच के । वैसे मन नहीं है ।उचित सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ।

// वैसे ये आजकल फ़िलबदीह करके खूब सुन रहा हूँ .. ये माज़रा क्या है, सर ? //   आदरणीय पिछली गज़ल मे विस्तार से जवाब लिख दिया हूँ  , आभार ॥  

// माज़रा क्या है, सर ? //   आपसे सर सुनना अच्छा लगा , वैसे बाक़ी सब को मना करता हूँ  , लेकिन इस भाव मे तो सर भी स्वीकार है

बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 5:40am

आदरणीय सौरभ भाई , आपको तो मालूम है , इस गज़ल ( दाल ) में  कोई भी छौंक नहीं है , सादी दाल है , जैसी की वैसी । ये गज़ल लिख गई है , कहीं कोई प्रयास नहीं है । इसीलिये शायद कुछ फीकी रह गई । देखूँगा कुछ सोच के । वैसे मन नहीं है ।उचित सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2015 at 6:24pm

रुक रुक के बढ़ती हुई ग़ज़ल लगी ये आदरणीय गिरिराज भाई.
थोड़ी और छौंक मारनी थी.. ज़िन्दग़ी के मसाला वाली.

वैसे ये आजकल फ़िलबदीह करके खूब सुन रहा हूँ .. ये माज़रा क्या है, सर ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 3:43am

आदरणीय गिरिराज सर, बेहतरीन फिल बदीह ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2015 at 8:29pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2015 at 8:28pm

आदरणीय वीनस भाई , आपका आभार ।

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 6:15pm

आ के छू तो कभी बामो दर ज़िन्दगी
मुझमें पैठा हुआ कोई डर ज़िन्दगी......वाह   शानदार  ग़ज़ल है आदरणीय गिरिराज सर , बधाई  ! सादर  

Comment by वीनस केसरी on June 24, 2015 at 12:38am

एक विशेष मनः स्थिति में कही गयी ग़ज़ल, अपने साथ ज़िंदगी के तमाम पहलुओं को ले कर बढ़ रही है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2015 at 12:28pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आप से मिली दाद हिम्मत बढ़ा देती है , आपका दिली शुक्रिया ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2015 at 12:24pm
आ. गिरिराज जी, बड़े खूबसूरत अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल कीजिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service