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अनुभव(लघु कथा, मनन कुमार सिंह)

अनुभव(लघुकथा)
-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on July 19, 2015 at 8:32pm
क ह....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 1:40am

का हो ?

:-)))

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2015 at 12:33pm

गजब गजब --------लडकियां भी कम नहीं . सुन्दर संवाद .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:50am

हा हा हा 

सटीक व्यंग्य करती लघुकथा 

बधाई 

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