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अब जो जायेंगे उस गली तो सबा छेड़ेगी
वारे उल्फ़त! मुझको मेरी ही वफ़ा छेड़ेगी
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जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते
हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी
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जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी
राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी
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वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर
बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी
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सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े
हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी
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चूम के हाथ अपने हवाओं के बोसे देना
अब तो सांसों की आती जाती हवा छेड़ेगी
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था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में
अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी
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मौलिक व् अप्रकाशित (c)"जान" गोरखपुरी
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Comment
आदरणीय कृष्ण भाई आप बहुत गहराई से लिखते है
शेर को समझने के लिए बहुत दिमाग लगाना पड़ता है.
इस कठिन अशआर वाली सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई
सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े
हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी------बहुत बढ़िया ,,,भाई आपकी गजल में निखार आ रहा है |
वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर
बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी
था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में
अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी...शानदार अशअारों के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
आ० धमेंद्र जी! सादर आभार!
मार्गदर्शन बनाये रक्खे!
आ० कांता जी, आपकी आत्मीय प्रसंशा से बहुत उर्जा मिली ,तहेदिल से शुक्रिया आ० हार्दिक आभार!
आ० Pari M Shlok जी तहेदिल से शुक्रिया! आपके अनुमोदन से बहुत बल मिला !आभार!
हौसलाफजाई के लिए हार्दिक आभार!आ० राहुल जी आगे प्रयास रहेगा और बेहतर करने का! आप मार्गदर्शन बनाये रक्खे!
आ० manoj भाई सादर आभार! जी गजल में एक ही भाव पे सभी शेर है इसलिये ये एक मुसलसल गज़ल की श्रेणी में आनी चाहिए, जो और जिसको के संबोधन भाववाचक संज्ञा के गजल के हर शेर में होने के कारण अधिक हुआ है,जो लिखते समय स्वत: आ गए है! गायन में मेरे ख्याल से ये अखरते नही है पढने में ये निगाह में अवश्य चढ़ रहें होंगे,फिर भी इस ओर सुधार करने के प्रयास रहेगा!
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