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ग़ज़ल - फिल बदीह -- घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से ( गिरिराज भंडारी )

1222       1222       1222        1222

मुहब्बत कब छिपी है चिलमनों की ओट जाने से

नज़र की शर्म कह देगी तुम्हारा सच जमाने से 

 

अरूजी इल्म में उलझे नहीं, बस शादमाँ वो हैं

हमे फुरसत नहीं मिलती कभी मिसरे मिलाने से

 

उदासी किस क़दर दिल में बसी है क्या कहें यारों

बस अश्कों का बहा दर्या है दिल के आशियाने से 

 

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसी नहीं, लेकिन 

झुके हैं  बारहा  लेकिन किसी के  सर झुकाने से

 

कभी ये भी  हुआ है प्यार के रस्ते में , जादू सा

घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से...

 

तो इक़रारे मुहब्बत क्या ज़बानी भी ज़रूरी है
ख़मोशी में अयां है सब, छिपा क्या है ज़माने से

**********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 9:47am
हर एक शेर लाजवाब बनी है आपकी आदरणीय गिरीराज भंडारी जी । क्या कहने है इस शेर का---
मुहब्बत कब छिपी है चिलमनों की ओट जाने से
नज़र की शर्म कह देगी तुम्हारा सच जमाने से .... जितनी भी दाद दे कम ही है यहाँ .. वाह !!!

शायर का मिसरा मिलाने से फुरसत ना मिलने पर भी क्या सुंदर शेर बनी है आपकी ..... वाह !!!
अचानक से दर्द का फसाना भी बयाँ कर गये आप बडी ही शायराना सा अंदाज़ लिए ..... क्या कहना है इस शेर के भी !!
अकड़ने की बात में तो बातों ही बातों में बडी बात कर गये ..... अति सुंदर
प्यार में दूरियाँ अक्सर बेहद नजदिकीयाँ कायम कर जाती है ..बडी रूमानियत से लिख गये शेर इस बात पर भी ... गजब हुई यह शेर , क्या कहना है इस अंदाज के भी ..

वाह !!!! ढेरों बधाई इस खूबसूरत गजल के लिए ।
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:39am
अजूबा भी हुआ है प्यार के रस्ते में , यूँ यारों
घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन
झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से

वाह सर लाज़वाब
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 3, 2015 at 7:43am
आदरणीय अच्छी गजल हुई है । एक बार ६वाँ शे'र देखे क्या तकाबुले रदीफ है?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 12:41am

आदरणीय गिरिराज सर बढ़िया फिल बदीह ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

बेहतरीन शेर -

अजूबा भी हुआ है प्यार के रस्ते में , यूँ यारों

घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से

 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:44pm

उदासी किस क़दर दिल में बसी है क्या कहें यारों

बस अश्कों का बहा दर्या है दिल के आशियाने से ---लाजवाब 

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन 

झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से--कमाल का मतला है 

जो चीखे , रोये, गाये झूठ ले कर भी , वही जीते

लिये सच हार बैठे , जो न छूटे  बुदबुदाने से---विशेष दाद ,,,,,,,,कमाल की गजल है आ.गिरिराज भंडारी सर जी |

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:20pm

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन 

झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से....बहुत खूब..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:23pm

आदरणीय पाठकों निम्न मिसरे में ' मिसाल ' शब्द के उपयोग करते समय लिंग दोष आ गया है  अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन   

इस मिसरे को कृपया ऐसे पढ़ें --- 

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसी नहीं, लेकिन     ---    आप सब का शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:19pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत  आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:18pm

आदरणीय कृष्णा भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:17pm

आदरणीय श्याम नारायण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

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