" आजकल इंडस्ट्री लगाना और उसे चलाना आसान नहीं रहा " कहते हुए उनके चेहरे का दर्द टपक गया |
" क्यों , क्या हो गया ऐसा ", आश्चर्य से पूछा उसने |
" अरे ये मनरेगा जो आ गया , अब जिसको अपने गाँव , घर में ही काम मिल जा रहा है , वो क्यों आएगा दूर काम करने "|
" और रही सही कसर ये शॉपिंग माल वाले पूरी कर दे रहे हैं | बढ़िया ए सी में काम मिल जा रहा है उनको "|
उसे अपना गाँव याद आ गया जहाँ ग्राम प्रधान और अधिकारी मिल कर मनरेगा का आधा से ज्यादा पैसा फ़र्ज़ी नाम से हड़प जाते हैं |
मज़दूर को भी दर्द होता है , वो सोच में डूब गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी..
आजकी वस्तुस्थिति को सापेक्ष करती हुई एक अच्छी कोशिश केलिए हृदय से बधाई आदरणीय..
बहुत बहुत आभार आदरणीय परी श्लोक जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीया शशि बंसल जी .
बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी.
बधाई! आ० विनय सर जी आपकी लघुकथाए नए नए सार्थक विषयों पर आ रही है! जो बहुत जरूरी है!
बहुत बहुत आभार आदरणीया कान्ता रॉय जी..
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