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" सर , मैं हस्पताल पहुँच गया हूँ , कवर करता हूँ एक्सीडेंट की स्टोरी "|
" अच्छा तो आपने देखा उनको , सामने देखकर कैसा लगा ? रिपोर्टर की आवाज़ ने उसके दर्द में इज़ाफ़ा कर दिया |
" अरे इतने बड़े स्टार से मुलाक़ात तो हो गयी , लोग तो तरसते हैं दूर से भी एक झलक पाने के लिए , कुछ बताईये ", और भी कुछ कह रहा था वो लेकिन दर्द और क्रोध के उबाल में उसने रिपोर्टर का माइक छीन कर फेंक दिया |
" स्टार , स्टार लगा रखा है , मेरी टूटी हड्डियाँ तुम्हे नहीं दिखती , दफा हो यहाँ से "|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 14, 2015 at 12:46pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:22pm

प्रस्तुति अच्छी है. अब प्रस्तुतीकरण पर भी ध्यान दें, आदणीय विनय जी.

शुभच्छाएँ

Comment by विनय कुमार on July 6, 2015 at 12:46pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2015 at 11:05am

आदरणीय , मीडिया की असंवेदन शील्ता पर अच्छा कटाक्ष । बधाई आपको ।

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 10:57pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया नीरज शर्मा जी , बस बेचना है खबर , चाहे जैसे..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 10:56pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी ..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 5, 2015 at 4:22pm

असवेदंशील होते जा रहे मीडिया की पोल खोलती सुन्दर लघुकथा!बधाई आदरणीय!

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 5, 2015 at 1:00pm

अंतिम पंक्ति में सारा दर्द उबल कर बाहर आया है। अक्सर पत्रकार ऐसे टी आर पी बढ़ाने वाले सवाल पूछते हैं कि खून खौल उठता है। आम आदमी के दर्द का अहसास किसी को नहीं होता। सुन्दर कथा। साधुवाद।

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:21pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी, आप का सुझाव बेहतरीन है.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 5, 2015 at 9:40am
तात्कालिक घटना पर विचार आधारित रचना। सादर शुभकामनाये आदरणीय विनय जी।

अंतिम पन्क्ति कुछ कठोर और गैरव्यवहारिक सी लगती है।//स्टार , स्टार लगा रखा है , मेरी टूटी हड्डियाँ तुम्हे नहीं दिखती , दफा हो यहाँ से "| //
इसके स्थान पर ये हो सकता है। // और वो एक गहन दर्द में लिपटी सोचने लगी कि कभी तो इस 'स्टारी' चेहरे से हटकर कोई हमारे अंदर के इंसानी चेहरे को पढ़ा करे। // ( एक सुझाव मात्र)

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