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नदी के बीच वाला पाया (लघुकथा)

एक नदी पर एक पुल था , जिसमे सात पाये थे। एक बार सबसे बीच वाले पाए ने सबसे किनारे वाले पाए से कहा “जानते हो यह पुल मेरी वजह से ही है। नदी की जलधारा का सबसे ज्यादा प्रवाह मैं ही झेलता हूँ। मैं हमेशा पानी में डूबा रहता हूँ, तुमलोगों का क्या किनारे खड़े रहते हो, बरसात में कभी कभी नदी की जलधारा तुम तक पहुँचती है वरना सालो भर ऐसे ही खड़े रहते हो, तुम्हारी उपयोगिता ही क्या है। मेरे कारण ही लाखों लोग इस पुल का प्रयोग कर नदी के आर पार जा पाते हैं । “
किनारे वाले पाये ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दिनो बाद किनारे वाले दोनों पाये ढह गए। अब उस पुल का सड़क से संपर्क टूट गया। उस पुल का प्रयोग बंद हो गया। उसी पुल के बगल में एक नया पुल बन गया। लोग उसी पुल से आने जाने लगे । बीच वाला पाया चुपचाप पानी में खड़ा नए बने पुल और उस पर आते जाते लोगों को देखता रहता।
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 6, 2015 at 9:18pm

सबकी अपनी उपयोगिता है और गुमान उचित नहीं | बढ़िया लघुकथा लेकिन आदरणीय मिथिलेश जी की बातों से सहमत हूँ | बधाई इस लघुकथा के लिए आदरणीय..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 3:35pm

आदरणीय नीरज जी 

प्रेरक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई 

यह भी अवश्य है कि बीच वाले पाए के कथन से पहली पंक्ति में ही कथा खुल जाती है और प्रभावित भी करती है किन्तु बाद का पठन किसी नए अंत की आशा में होता है. संभवतः इसलिए पंच लाइन वैसा प्रभाव नहीं डाल सकी जैसा इस विधा में अपेक्षित होता है.

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