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दिल में शायरी का जब भी दोर उट्ठेगा
सबसे पहले तेरे नाम का शोर उट्ठेगा !!
पहली बारिश की रिमझिम शुरू क्या हुई
देख आज बगिया में नाच मोर उट्ठेगा !!
तेज हवाएँ तेरे इश्क़ में कुछ चलीं ऐसी
दिल में एहसासों का बबंडर जोर उट्ठेगा !!
जब आयेगा धुवाँ पड़ोस के घर के चुल्हे से
तभी मेरे हाथ से ये खाने का कोर उट्ठेगा !!
बचा कर रखना ये दिल मेरी तीरंदाजी से
वर्ना लूटने 'इंतज़ार' के दिल का चोर उट्ठेगा !!
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मौलिक व अप्रकाशित
बे-बहर लाज़मी है कृपया सुझाव दें
Comment
आदरणीय shree suneel जी उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार ...जी वक़्त से कुछ तो सुधेरगा ...सादर
आ: डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप का हार्दिक आभार... आप की आज्ञा अनुसार कुछ संशोधन कर रहा हूँ ..आशा है कुछ सुधार हो पयेगा ...सादर
आदरणीय
डांगी जी की शंकाये सही है आपका रदीफ़ है 'र उट्ठेगा' और कफिया है 'औ' इस लिहाजसे बाद में काफिया 'ओ ' सही नहीं लगता . दूसरी बात चुल्हा शब्द ही सही है . सादर .
गुणीजनों से बहर दुरुस्त करने के लिये आलोचनात्मक टिप्पणी की अपेक्षा है ...सादर
आदरणीय Shyam Narain Verma जी शुक्रिया आप का ...सादर
आदरणीया kanta roy जी आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिये मैं आभारी हूँ .....इससे मेरी लिखने की हिम्मत बनी रहेगी .....सादर
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