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गज़ल - फिल बदीह - कभी पत्थर नहीं देता ( गिरिराज भंडारी )

1222   1222   1222   1222

पियाला वो किसी को भी, कभी भर कर नहीं देता

जिसे वो नींद देता है , उसे बिस्तर नहीं देता

कभी शीशा छुपाता है , कभी पत्थर नहीं देता

बहे गुस्सा मेरा कैसे , ख़ुदा अवसर नहीं देता

तुम्हारी हर ज़रूरत पर नज़र वो खूब रखता है

तुम्हारी ख़्वाहिशों पर ध्यान वो अक्सर नहीं देता

खुशी तुम भीतरी मांगो तो वो तस्लीम करता  है

अगर बाहर के सुख मांगे तो वो भीतर नहीं देता

किया तुमने नहीं वादा  शिकायत फिर मुझे क्यूँ हो  

शिकायत उससे होती है , जो हाँ कहकर, नहीं देता

चलो तुम बांटते ही हो, अकड़ना क्या ज़रूरी है ?

यहाँ क्या बांटने वाला कभी झुक कर नहीं देता ?

रहा जब तक सुनी तुमने नहीं,  जिस शख़्स की यारो

लिपट कर आज रोना क्यूँ , कि वो उत्तर नहीं देता

***********************************************

गिरिराज भंडारी ---    संशोधित

 

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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 8, 2015 at 10:14am
तुम्हारी ख्वाहिशों पर ध्यान वो अक्सर नहीं देता

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 5:57am

आदरणीय मिथिले श भाई , हौसला अफ्ज़ाई का बेहद शुक्रिया । मिसरे सुधार रहा हूँ , अभी बस रात 11 तल फ्ल बदीह मे शे र कहना और सुबह वैसे के वैसे ही ओ बी ओ मे पोस्ट करना , चल रहा है , एक दिन भी गज़ल मेरे पास नही रह पाती , सोचने सुधारने के लिये , मै आपको मना किया करता था , और खुद वही काम कर रहा  हूँ । लेकिन मजबूरी वश , अगर वहाँ पोस्ट पहले कर दिया तो ओ बी ओ मे नहीं कर पाऊँगा , यहाँ पोस्ट होना जियादा ज़रूरी है , आप सब के सहयोग से गलतियाँ सुधर जातीं हैं । आभार आपका ।

तुम्हारी ख़्वाहिशों पर वो नज़र अक्सर नहीं देता  --  इस मिसरे की गलती समझ नही पाया  --  नज़र को देना कहा इसलिये अगर है तो ये मज़बूरी है , काफिया मिलाने के लिये -- अगर और कुछ हो तो बताइयेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2015 at 5:48am

आदरणीय श्याम नारायण भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।

Comment by विनय कुमार on July 8, 2015 at 1:36am

// चलो तुम बांटते ही हो, अकड़ना क्या ज़रूरी है ?
यहाँ क्या बांटने वाला कभी झुक कर नहीं देता ?// , बहुत खूबसूरत , बधाई इस रचना के लिए आदरणीय..

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 7, 2015 at 5:05pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत उम्दा शेर हुए है दाद कबूल करें ...सादर 

शिकायत उससे होती है , जो हाँ कहकर, नहीं देता....बहुत खूब


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 7, 2015 at 4:28pm

आदरणीय गिरिराज सर बढ़िया ग़ज़ल हुई है ...दाद कुबूल फरमाएं 

इन मिसरों को देख लीजियेगा-

1. तुम्हारी ख़्वाहिशों पर वो नज़र अक्सर नहीं देता

2. अगर तुम बाहरी मांगे तो वो भीतर नहीं देता

3. किया तुमने नहीं वादा तो मुझे फिर क्यूँ शिकायत हो  


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2015 at 11:41am

आदरणीय श्याम नारायण भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 7, 2015 at 10:29am
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई

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