अनुष्ठान में पंडितों का जमावड़ा , हवन और मंत्रों के जाप से सम्पूर्ण वातावरण पवित्र और सुवासित हो उठा था । प्राँगण में महिलाओं का समूह बैठकर बडे उत्साह से ढोल मंजीरे लिये भजन गा रहा था ।
एक पंडित ने अनुष्ठान के आमदनी पर सवाल उठाये कि मंदिर कार्यकर्ताओं में खलबली मच गई ।
पल भर में ही देव सारे विलुप्त हो गये अनुष्ठान में सिर्फ दानवों का अधिपत्य हो गया ।
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
वाह वाह ! लघुकथा ने पंच लाइन के माध्यम से सटीक माहौल बनाया है. देव और दानव को दो जातियों के थे या नहीं यह इतिहास ही नहीं, मानवविज्ञान, मनोविज्ञान और तो और व्यवस्था (प्रशासन) का भी प्रश्न रहा है. लेकिन ये दो इकाइयाँ मनोवृत्ति की उपज हैं, अधिक अपीलिंग है. देखिये, आपकी कथा का इंगित तभी कितना प्रभावी बन पड़ा है.
शुभेच्छाएँ
पल भर में ही देव सारे विलुप्त हो गये अनुष्ठान में सिर्फ दानवों का अधिपत्य हो गया । मेंरी समझ में कहानी वही ख़त्म हो जाती है . इसके आगे का वर्णन कई अनावश्यक सवाल खड़े करता है
.प्राँगण में महिलाओं का समूह में बैठ बडे उत्साह से ढोल मंजीरे लिये भजन गाना =====इसे इस तरह लिखा जा सकता है---प्राँगण में महिलाओं का समूह बैठकर बडे उत्साह से ढोल मंजीरे लिये भजन गा रहा था . सादर
आदरणीया जी , मुझे कोई आपत्ति नही है, लेखक को पूर्ण अधिकार है , लिखने का क्योंकि रचना की परिकल्पना लेखक की ही होती है , समीक्षक की नही .
कृपया अन्यथा न लेंगी , सादर // हवन कुंड फिर से माँस लोथरों से भर गया ।// में से यदी // फिर से // हटा दिया जाए तों क्या ठीक न होगा . इस कथा के क्रम में . सादर
हवन कुंड फिर से माँस लोथरों से भर गया ।---क्या इस वाक्य के बगैर रचना ठीक न थी . धार्मिक स्थल पर पंडों की स्थिति का सटीक वर्णन , बधाई आदरणीया जी
प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
इस वाक्य के विन्यास को एक बार पुनः देखिएगा-
प्राँगण में महिलाओं का समूह में बैठ बडे उत्साह से ढोल मंजीरे लिये भजन गाना एक अद्भुत समावेश वातावरण में गतिमान था ।
बहुत खूब ...पैसे के मोह में दानव जाग ही जाता हैं ..नमस्ते दी
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