चेप्टर-२ - विविध दोहे
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय
ढोंगी या संसार में, मिला न अपना कोय
वर्तमान की प्रीत में, बस धोखा ही होय
न्यून वस्त्र में आ गयी, वर्तमान की नार
लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार
औछे करमन से भला, कैसे सदगति होय
जैसी संगत साथ हो, वैसी ही मति होय
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट के डारि से भला, काहे पुष्प न रोय
आँख मूँद कर भजने से, कब मिलते भगवान
प्रेम अगर हो सूर सा, आन मिलें घनश्याम
इत उत किसको ढूंढता, रे पगले इंसान
कस्तूरी मृग ज्यूँ बसे , प्रभु तुझमें नादान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लडीवाला जी आपका कथन सही है कि होय,कोय,आदि से बचना चाहिये। इसका मैं इस का अवश्य प्रयत्न करूंगा कि ऐसे शब्दों से परहेज़ क्या जाए।ये बात मैं आदरणीय सौरभ जी द्वारा हाल ही में आयोजित लाईव आयोजन में की गयी एक टिप्पणी में भी पढ़ा था लेकिन उससे पहली ही प्रस्तुति पटल पर आ चुकी थी। बहरहाल आपके सुझाव और मार्गदर्शन का हार्दिक आभार। कृपया किसी बात को अन्यथा न लेवें। संवाद से ही त्रुटि निदान होता है। धन्यवाद।
आदरणीय सरना जी आपसे प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए कहने के पीछे मेरा तात्पर्य यह था कि मात्राएँ सही होने पर भी मैंने बदलाव क्यों सुझाए यह जानने की कोशिश करे | आपके प्रथम और चतुर्थ दोहे में दोनों सम चरण में तुकान्त न होकर "होय" सकान्त है |
दूसरे दोहे में "कोय/होय" तथा पांचवें में "होय/रोय" है | आजकल हाय,वाय, होय वोय,कोय,सोय,आय, जाय जैसे शब्दों से जहां तक जरुरी न हो, बचने का प्रयास करना ही उचित माना जाता है | मेरे सुझाएँ दोहे उस सीमा तक ही माने जहां तक आपके भावों के अनुरूप हो | सादर
आदरणीय लडीवाला जी आपकी समीक्षात्मक उपस्थिति का तहे दिल आभार। आपने अपना अमूल्य समय देकर मुझे कृतार्थ किया है।
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय - बिना समपर्ण भाव के, करे न सच्ची प्रीत
आदरणीय यहां ''करे न सच्चे प्रीत'' में '' विषम चरण का भाव बदल गया इसमें अगर ''होय न या हो न '' करें तो अधिक सार्थक होगा मेरे विचार में। इसमें कहीं मात्र हनन भी नहीं हो रहा।
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय - छल करता जो प्रीत में, उसकी खोटी नीत |
इस सम चरणान्त में ''उसकी खोटी नीत '' में भी मुझे विषम चरण के भाव का हैं प्रतीत हो रहा है वैसे तुकांत सही है।
ढोंगी या संसार में, मिला न अपना कोय - ढोंगी इस संसार में, है अपना अब कौन,
इस परिवर्तित रूप में सम चरण विषम चरण के भाव को स्पष्ट कर रहा है … बहुत सुंदर
वर्तमान की प्रीत में, बस धोखा ही होय - वर्तमान की प्रेम में, क्षुब्ध हुआ मन मौन |
इसमें सम चरण में वर्तमान की प्रेम नहीं वर्तमान का प्रेम होगा -दूसरे सम चरण के भाव को यदि देखें तो मेरे विचार में ''वर्तमान के प्रेम के '' स्थान पर ''वर्तमान के प्रेम से'' होना चाहिए।
न्यून वस्त्र में आ गयी, वर्तमान की नार कम वस्त्रों में आ गयी, वर्तमान की नार,
लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार |
इसमें न्यून के स्थान पर कम का प्रयोग सही है। बहुत खूब। वैसे न्यून से मेरा अभिप्राय यहां पर अल्पतम से था।
औछे करमन से भला, कैसे सदगति होय ओछें कर्मो से भला, सद्गति के हो भाव,
जैसी संगत साथ हो, वैसी ही मति होय जैसी संगत में रहों, वैसा पड़े प्रभाव |
सुंदर परिवर्तन … बहुत खूब।
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय - पुष्प छुअन में शूल से, करे दर्द महसूस
टूट के डारि से भला, काहे पुष्प न रोय डाली से जब टूटता, होता वह मायूस |
आ. गोपाल जी के सुझाव के अनुसार इसका संशोधित रूप है : पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट डारि से फिर भला, कैसे पुष्प न रोय'' आपकी द्वारा प्रस्तुत रूप भी सुंदर है।
आप जैसे गुणीजनों का मार्गदर्शन सृजन को बल देता है। आपका बहुत बहुत आभार सर।
आदरणीय डॉ गोपाल भाई साहिब दोहों पर आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा एवं सुझाव का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि बिलकुल सही है और सुझाव भी प्रशंसनीय हैं। यदि निम्नानुसार सुधार किया जाए तो ठीक होगा :.
१.
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में ,जीव सदा वो रोय
२.
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट डारि से फिर भला, कैसे पुष्प न रोय
३.
आँख मूँद कर भजन से, कब मिलते भगवान
प्रेम अगर हो सूर सा, आन मिलें घनश्याम
आदरणीय आप ऐसे ही मार्दर्शन करते रहें निश्चित रूप से त्रुटियाँ कम होती जाएंगी। इस सहयोग का हार्दिक आभार। कृपया स्नेह बनाये रखें।
आदरणीय इन दोहों के सथानापन्न दोहें पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर क्रथार्थ करे -
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय - बिना समपर्ण भाव के, करे न सच्ची प्रीत
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय - छल करता जो प्रीत में, उसकी खोटी नीत |
ढोंगी या संसार में, मिला न अपना कोय - ढोंगी इस संसार में, है अपना अब कौन,
वर्तमान की प्रीत में, बस धोखा ही होय वर्तमान की प्रेम में, क्षुब्ध हुआ मन मौन |
न्यून वस्त्र में आ गयी, वर्तमान की नार कम वस्त्रों में आ गयी, वर्तमान की नार,
लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार |
औछे करमन से भला, कैसे सदगति होय ओछें कर्मो से भला, सद्गति के हो भाव,
जैसी संगत साथ हो, वैसी ही मति होय जैसी संगत में रहों, वैसा पड़े प्रभाव |
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय - पुष्प छुअन में शूल से, करे दर्द महसूस
टूट के डारि से भला, काहे पुष्प न रोय डाली से जब टूटता, होता वह मायूस |
आ० सरना जी
बहुत बढिया भावपूर्ण दोहे .
-होय के बाद फिर होय का तुक सही नही है , कृपया सुधार कर ले .
-टूट के डारि से भला ------में माँत्रा विन्यास ३+2+३+2+३ है जो त्रुटिपूर्ण है ३+३+2+३+2 -----------------'टूट डारि से फिर भला ,कैसे पुष्प न रोय' सही होगा . इसी प्रकार 'आँख मूँद कर भजने से' भी त्रुटिपूर्ण है . सही होगा 'आँख मूँद कर भजन से '
सादर .
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति दोहों पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना भाए , बहुत बी बढिया दोहे हुये है ! आपको हार्दिक बधाई दोहा वली के लिये । बाक़ी आदरणीय अशोक भाई कह ही चुके हैं
आदरणीय savitamishra जी प्रस्तुति पर आपकी उत्सावर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी उत्सावर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online