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चेप्टर-२ - विविध दोहे

चेप्टर-२ - विविध दोहे

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय
वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय

न्यून  वस्त्र  में आ गयी, वर्तमान  की नार
लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार

औछे  करमन से भला, कैसे सदगति होय
जैसी संगत  साथ हो,  वैसी  ही मति होय

पुष्प  छुअन  में शूल से,  कैसे दर्द न होय
टूट  के डारि  से भला,  काहे  पुष्प न रोय

आँख मूँद कर भजने से, कब मिलते भगवान
प्रेम अगर हो सूर सा,  आन  मिलें  घनश्याम

इत  उत  किसको  ढूंढता,  रे   पगले   इंसान
कस्तूरी   मृग   ज्यूँ बसे ,  प्रभु तुझमें नादान


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on July 13, 2015 at 11:32am

आदरणीय लडीवाला जी आपका कथन सही है कि होय,कोय,आदि से बचना चाहिये। इसका मैं इस का अवश्य प्रयत्न करूंगा कि ऐसे शब्दों से परहेज़ क्या जाए।ये बात मैं आदरणीय सौरभ जी द्वारा हाल ही में आयोजित लाईव आयोजन में की गयी एक टिप्पणी में भी पढ़ा था लेकिन उससे पहली ही प्रस्तुति पटल पर आ चुकी थी। बहरहाल आपके सुझाव और मार्गदर्शन का हार्दिक आभार। कृपया किसी बात को अन्यथा न  लेवें। संवाद से ही त्रुटि निदान होता है। धन्यवाद। 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 13, 2015 at 10:38am

आदरणीय सरना जी आपसे प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए कहने के पीछे मेरा तात्पर्य यह था कि मात्राएँ सही होने पर भी मैंने बदलाव क्यों सुझाए यह जानने की कोशिश करे | आपके प्रथम और चतुर्थ दोहे में दोनों सम चरण में तुकान्त न होकर "होय" सकान्त है |

दूसरे दोहे में "कोय/होय" तथा पांचवें में "होय/रोय" है | आजकल हाय,वाय, होय वोय,कोय,सोय,आय, जाय जैसे शब्दों से जहां तक जरुरी न हो, बचने का प्रयास करना ही उचित माना जाता है | मेरे सुझाएँ  दोहे उस सीमा  तक ही माने जहां तक आपके भावों के अनुरूप हो | सादर 

Comment by Sushil Sarna on July 12, 2015 at 10:01pm

आदरणीय लडीवाला जी आपकी समीक्षात्मक उपस्थिति का तहे दिल आभार। आपने अपना अमूल्य समय देकर मुझे कृतार्थ किया है।

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय - बिना समपर्ण भाव के, करे न सच्ची प्रीत
आदरणीय यहां ''करे न सच्चे प्रीत'' में '' विषम चरण का भाव बदल गया इसमें अगर ''होय न या हो न '' करें तो अधिक सार्थक होगा मेरे विचार में। इसमें कहीं मात्र हनन भी नहीं हो रहा।
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय - छल करता जो प्रीत में, उसकी खोटी नीत |
इस सम चरणान्त में ''उसकी खोटी नीत '' में भी मुझे विषम चरण के भाव का हैं प्रतीत हो रहा है वैसे तुकांत सही है।

ढोंगी या संसार में, मिला न अपना कोय - ढोंगी इस संसार में, है अपना अब कौन,
इस परिवर्तित रूप में सम चरण विषम चरण के भाव को स्पष्ट कर रहा है … बहुत सुंदर
वर्तमान की प्रीत में, बस धोखा ही होय - वर्तमान की प्रेम में, क्षुब्ध हुआ मन मौन |
इसमें सम चरण में वर्तमान की प्रेम नहीं वर्तमान का प्रेम होगा -दूसरे सम चरण के भाव को यदि देखें तो मेरे विचार में ''वर्तमान के प्रेम के '' स्थान पर ''वर्तमान के प्रेम से'' होना चाहिए।


न्यून वस्त्र में आ गयी, वर्तमान की नार कम वस्त्रों में आ गयी, वर्तमान की नार,
लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार |

इसमें न्यून के स्थान पर कम का प्रयोग सही है। बहुत खूब। वैसे न्यून से मेरा अभिप्राय यहां पर अल्पतम से था।

औछे करमन से भला, कैसे सदगति होय ओछें कर्मो से भला, सद्गति के हो भाव,
जैसी संगत साथ हो, वैसी ही मति होय जैसी संगत में रहों, वैसा पड़े प्रभाव |

सुंदर परिवर्तन … बहुत खूब।

पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय - पुष्प छुअन में शूल से, करे दर्द महसूस
टूट के डारि से भला, काहे पुष्प न रोय डाली से जब टूटता, होता वह मायूस |

आ. गोपाल जी के सुझाव के अनुसार इसका संशोधित रूप है : पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट डारि से फिर भला, कैसे पुष्प न रोय'' आपकी द्वारा प्रस्तुत रूप भी सुंदर है।

आप जैसे गुणीजनों का मार्गदर्शन सृजन को बल देता है। आपका बहुत बहुत आभार सर।

Comment by Sushil Sarna on July 12, 2015 at 3:48pm

आदरणीय डॉ गोपाल भाई साहिब दोहों पर आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा एवं सुझाव का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि बिलकुल सही है और सुझाव भी प्रशंसनीय हैं। यदि निम्नानुसार सुधार किया जाए तो ठीक होगा :.
१.
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में ,जीव सदा वो रोय
२.
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट डारि से फिर भला, कैसे पुष्प न रोय

३.
आँख मूँद कर भजन से, कब मिलते भगवान
प्रेम अगर हो सूर सा, आन मिलें घनश्याम

आदरणीय आप ऐसे ही मार्दर्शन करते रहें निश्चित रूप से त्रुटियाँ कम होती जाएंगी। इस सहयोग का हार्दिक आभार। कृपया स्नेह बनाये रखें।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 12, 2015 at 12:36pm

आदरणीय  इन दोहों के  सथानापन्न दोहें पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर क्रथार्थ करे -

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय -  बिना समपर्ण भाव के, करे न सच्ची प्रीत 
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय  - छल करता जो प्रीत में, उसकी खोटी नीत |

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय -  ढोंगी इस संसार में, है अपना अब कौन,
वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय     वर्तमान की प्रेम में, क्षुब्ध हुआ मन मौन |

न्यून  वस्त्र  में आ गयी, वर्तमान  की नार    कम वस्त्रों में आ गयी, वर्तमान की नार, 
लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार     लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार |

औछे  करमन से भला, कैसे सदगति होय     ओछें  कर्मो  से भला, सद्गति के हो भाव,
जैसी संगत  साथ हो,  वैसी  ही मति होय      जैसी संगत में रहों,   वैसा  पड़े  प्रभाव |

पुष्प  छुअन  में शूल से,  कैसे दर्द न होय    -  पुष्प छुअन में शूल से, करे दर्द महसूस 
टूट  के डारि  से भला,  काहे  पुष्प न रोय        डाली से जब टूटता,  होता वह मायूस | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 12, 2015 at 9:23am

आ० सरना जी

बहुत  बढिया भावपूर्ण दोहे .

 -होय के बाद फिर होय का तुक सही नही है , कृपया सुधार कर ले .

-टूट  के डारि  से भला ------में माँत्रा विन्यास ३+2+३+2+३ है  जो त्रुटिपूर्ण  है  ३+३+2+३+2 -----------------'टूट  डारि  से फिर भला ,कैसे पुष्प न रोय'  सही होगा . इसी प्रकार 'आँख मूँद कर भजने से' भी त्रुटिपूर्ण है . सही होगा  'आँख मूँद कर भजन से '  

सादर .

Comment by Sushil Sarna on July 11, 2015 at 7:49pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति दोहों पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 11, 2015 at 1:10pm

आदरणीय सुशील सरना भाए , बहुत बी बढिया दोहे हुये है ! आपको हार्दिक बधाई दोहा वली के लिये । बाक़ी आदरणीय अशोक भाई कह ही चुके हैं

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2015 at 3:45pm

आदरणीय savitamishra जी प्रस्तुति पर आपकी उत्सावर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2015 at 3:45pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी उत्सावर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

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