सिर्फ देखा है जी भर के …
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
ज़िंदगी भर हम ग़ुलामी करेंगे मगर
रुख़ से चिलमन ज़रा ये हटा दीजिये
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
हम फ़कीरों का दर कोई होता नहीं
हर दर पे फ़कीर कभी सोता नहीं
अब खुदा आपको हम बना बैठे हैं
अब पनाह दीजिये या मिटा दीजिये
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
आप के प्यार में इस कदर खो गए
जाने बाहों में कब आपकी सो गए
होश हो न हमें अब सुबह शाम का
अपनी नज़रों से ऐसी पिला दीजिये
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
नींदों में ख़्वाब थे ख़्वाब में आप थे
हम कहाँ दूर थे बस आपके पास थे
आप ही से क्यूँ दूरी न मिटाई गयी
इस दिल को बस इतना बता दीजिये
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय shree suneel जी प्रस्तुति पर आपकी प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी प्रस्तुति पर आपकी उत्सावर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय प्रेम गीत के तो आप धनी हैं i क्या बेहतरीन लिखा है . सुन्दर .
आदरणीय Rahul Dangi जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय vijay nikore जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
सुन्दर भाव पिरोय हैं। बधाई।
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