For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.

बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”

“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए ,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”

“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”

“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है .”

 ----------------------------------

११/०७/२०१५ 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Omprakash Kshatriya on July 14, 2015 at 7:52am

आदरणीया  kanta roy  जी 

आप को लघुकथा पसंद आई. आप ने इस के मर्म को खूबसूरती से प्रस्तुत किया. इस के लिए आप का ह्रदय से आभारी हूँ.

Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 8:44pm
संस्कार के तरफ खींचती हुई ..... बच्चे की संवेदनशीलता और तिरस्कृत बुढापा .... तीनों का संयोजन क्या खूब हुआ है यहाँ । बहुत ही बढिया कथा हुई है आपकी आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी । बधाई
Comment by Omprakash Kshatriya on July 13, 2015 at 9:15am

आदरणीय Madanlal Shrimali जी 

आप की टिपण्णी पढ़ कर मन खुश हो गया. आप को लघुकथा अच्छी लगी .//कहते है बुढ़ापे में औलाद ही माँ बाप की आँखे होती है// और जब आंखे साथ छोड़ जाए तो आदमी बेसहारा हो जाता है.

शुक्रिया आप का 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 13, 2015 at 9:13am

आदरणीय vinaya kumar singh  जी आप ने लघुकथा की सार्थकता पर सार्थक बात कही है . आप ने इसे एक सफल लघुकथा माना है. यह मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है. एक लघुकथाकार की लघुकथा सफल हो जाए, इस से बड़ी ख़ुशी उस के लिए और क्या हो सकती है. आप का आभार .

Comment by Omprakash Kshatriya on July 13, 2015 at 9:09am

आदरणीय  PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी 

सादर प्रणाम.

आप ने शानदार बात कही -//आप को दिखाई नहीं देता है.// के बगैर कम नही चल सकता था क्या  ?//

जी हां. मगर मेरा ध्यान ही नहीं गया. आप ने यह कमी बताई . आभारी हूँ. इस को हटाने से लघुकथा में और कसावट आ जाएगी श्रीमान.

आभार आप का 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 13, 2015 at 9:06am

आदरणीय  धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी 

आप को लघुकथा पसंद आई . मेरी मेहनत सफल हो गई .

आभार आप का 

Comment by Madanlal Shrimali on July 13, 2015 at 8:05am
कहते है बुढ़ापे में औलाद ही माँ बाप की आँखे होती है मगर कलयुगी औलाद ही पिता को मारने पे तुली है। इस सुन्दर मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करे आ.ओमप्रकाशजी।
Comment by विनय कुमार on July 13, 2015 at 2:16am

बुढ़ापे में तो औलाद आजकल ख़ुदा के घर ही भेजने की जल्दी में रहती है वालिदैन को , बहुत बेहतरीन लघुकथा । इतने कम शब्दों में आपने अपना सन्देश स्पष्ट कर दिया , यही इसकी सफलता है । बहुत बहुत बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी ..

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 12, 2015 at 6:40pm

//आखिर इस अंधे को गिरा दिया.//--ठीक  है 

फिर आदरणीय जी 

//आप को दिखाई नहीं देता है.// के बगैर कम नही चल सकता था क्या  ?

बढ़िया कथा , कलियुगी पुत्र की कहानी , बधाई सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2015 at 6:26pm

अच्छी लघुकथा है आदरणीय ओमप्रकाश जी, दाद कुबूल कीजिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service