भक्त ने भगवान से कहा, "भगवन! आपके पास जितना ज्ञान है वो सारा का सारा मुझे भी प्रदान कर दीजिए।"
भगवान बोले, "तथास्तु।"
भक्त को दुनिया की सारी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक और धर्मग्रन्थ इत्यादि याद हो गए। उसे हर तरह की कला एवं संगीत का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया। उसे दर्शन एवं विज्ञान के सभी सिद्धान्त याद हो गए। इस तरह वह परमज्ञानी हो गया।
उसने अपनी कलम उठाई और एक कविता लिखने का प्रयास करने लगा। कुछ पंक्तियाँ लिखने के बाद उसे लगा कि इस तरह की कविता तो अमुक भाषा में पहले ही लिखी जा चुकी है। उसने चित्र बनाने का प्रयास किया तो वहाँ भी उसे लगा कि अमुक चित्रकार तो इस तरह का चित्र पहले ही बना चुका है। वो जो कुछ करना शुरू करता उसे लगता कि ये सब कुछ पहले ही किया जा चुका है।
अंत में हारकर भक्त फिर भगवान से बोला, "मुझे पहले जैसा बना दीजिए।"
भगवान के अधरों पर मुस्कान तैर गई।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी , आप की लघुकथा ने ज्ञान का पूरा खाका खींच दिया . अंत की पंक्ति गजब की बनी है /// "मुझे पहले जैसा बना दीजिए।"/// बधाई आप को
बहुत सुन्दर , सारगर्भित और सटीक लघुकथा । शीर्षक भी बहुत बढ़िया है इसका , बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी..
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, शानदार लघुकथा हुई है. शीर्षक को सार्थक करती तथा अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. सादर
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