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मिठाई ( लघुकथा )

नास्तिक बाबूजी को देर रात ,चुपके से पूजाघर से निकलते देख मानस की उत्सुकता जाग गई,और पुलिसिया मन शंकित हो उठा।वो चुपके से उनके पीछे चल पड़ा।

उन्होंने हाथ में पकड़ा लड्डू माँ की ओर बढ़ा दिया
" लो खा लो "
" ये कहाँ से लाए आप ?"
"पूजा घर से "उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।
उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था।


( मौलिक एवम अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 10:10am

आदरणीया , आपकी पोस्ट के ऊपर दाहिनी तरफ एक बटन है  आप्शन का , उसे दबायेंगे तो आपका एडिट पोस्ट का आप्शन दिखेगा उसे आप दबा कर अपनी पोस्ट मे सुधार कर सकते हैं , सुधार कर के फिर से नीचे  एक बटन उसे दबा दें । आपकी पोस्ट फिर से प्रकाशित की जायेगी प्रधान संपादक  द्वारा , कुछ समय लगेगा पुनः प्रकाशन में ।

Comment by jyotsna Kapil on July 16, 2015 at 9:11am
आपकी हृदयतल से आभारी हूँ आ.गिरिराज भंडारी जी की अपने कथा को पसन्द किया। आपका कथन की किसकी आँख भर आई स्पष्ट नहीं हुआ,मुझे भी अपनी त्रुटि का भान हुआ।आँख बेटे यानि मानस की भर आई।अल्पज्ञानी होने के कारण इस गलती को सुधारूँ कैसे मुझे नहीं पता। यदि यहाँ एडिट का ऑप्शन हो तो कृपया मुझे बतायें।
Comment by jyotsna Kapil on July 16, 2015 at 9:03am
सादर नमन एवम आभार आ. डॉ. विजय शंकर जी कथा को पसन्द करने एवम सराहना के लिए।आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बहुत बढ़ाया है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 6:12am

आदरणीया , लघुकथा बहुत अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाई । किसकी आँख़ें भर आये ये मुझे साफ नही हुआ , मैने तीनो पात्र की आखों एक के भर के समझने की कोशिश की है ।मुझे लगता है उसकी की जगह पात्र का नाम आना चाहिये था । ये भी होसकता है कि कम पढा होने के कारण मै न समाझा  हो ऊँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2015 at 11:52pm
प्रेमचंद रचित " बूढ़ी काकी " आ गई , आदरणीय सुश्री ज्योत्स्ना जी , सादर।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:45pm
अन्तस् से आभार स्नेही अनुजा नेहा अग्रवाल जी कथा को पसन्द करने व् उसकी सराहना के लिए।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:44pm
आपका हर शब्द मेरे लिए अनमोल है आ.राजेश कुमारी जी।आज लग रहा है मानो लेखन सफल हो गया।आपको हृदयतल से आभार एवम नमन।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:42pm
कथा को पसन्द करने व अभिमत देने हेतु आपकी अति आभारी हूँ आ.प्रतिभा पांडे जी
Comment by neha agarwal on July 15, 2015 at 8:17pm
बहुत खूब दी आह से वाह तक की कथा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 10:34am

उफ्फ्फ हृदय कचोट गई ये लघु कथा ..इससे बड़ा तिरस्कार भला क्या होगा बुजुर्गों का ....अपना प्रभाव अपना सन्देश छोड़ने में कामयाब इस सशक्त लघु कथा के लिए दिल से ढेरों बधाई आपको ज्योत्स्ना जी|  

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