नास्तिक बाबूजी को देर रात ,चुपके से पूजाघर से निकलते देख मानस की उत्सुकता जाग गई,और पुलिसिया मन शंकित हो उठा।वो चुपके से उनके पीछे चल पड़ा।
उन्होंने हाथ में पकड़ा लड्डू माँ की ओर बढ़ा दिया
" लो खा लो "
" ये कहाँ से लाए आप ?"
"पूजा घर से "उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।
उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था।
( मौलिक एवम अप्रकाशित )
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आदरणीया , लघुकथा बहुत अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाई । किसकी आँख़ें भर आये ये मुझे साफ नही हुआ , मैने तीनो पात्र की आखों एक के भर के समझने की कोशिश की है ।मुझे लगता है उसकी की जगह पात्र का नाम आना चाहिये था । ये भी होसकता है कि कम पढा होने के कारण मै न समाझा हो ऊँ ।
उफ्फ्फ हृदय कचोट गई ये लघु कथा ..इससे बड़ा तिरस्कार भला क्या होगा बुजुर्गों का ....अपना प्रभाव अपना सन्देश छोड़ने में कामयाब इस सशक्त लघु कथा के लिए दिल से ढेरों बधाई आपको ज्योत्स्ना जी|
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