“आज बहुत लेट हो गई ? ’मम्मा ऑफिस से कब आएगी’, पूछ-पूछ कर परी ने कबसे परेशान कर रखा है..”
सासू माँ की बगल में सुनंदा की तीन साल की बेटी चुपचाप अपनी गुड़िया के साथ खेल में मग्न थी.
“मधुकर भैया है न, इनके दोस्त, उनके यहाँ बेटी हुई है, बस हॉस्पिटल गई थी. इनका फोन आया था कि वो नहीं जा पाएंगे इसलिए मुझे जाना पड़ा.” - सुनंदा की आवाज़ सुनकर परी दौड़ती हुई अपनी मम्मा से लिपट गई.
“अरे उसकी तो पहले ही एक लड़की है न ?... काश इस बार लड़का हो जाता.. अच्छा रहता.” कहती हुई सासू माँ ने सुनंदा से लिपटी हुई परी को कुछ ऐसी नज़रों से देखा कि सुनंदा भीतर तक काँप गई.
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
एक ऐसी कथा जिसके बारे में लेखक ने स्वयं कहा है कि यह विषय अछूता नहीं है. लेकिन कुछ विषय अक्सर उठाने वाले हुआ करते हैं. देखना यह पड़ता है कि उसे कितने सार्थक ढंग से उठया गया है ? या, कथ्य का निर्वहन कैसे हो पाया है ?
आदरणीय मिथिलेशजी ने इस विषय को गहराई से सोचा है और उसे संवाद और इंगितों का आवश्यक आवरण दिया है. इस हेतु वे अवश्य बधाई के पात्र हैं. विशेषकर उस स्थिति में, जब आप स्वयं को इस विधा में पहले दर्ज़े अभ्यासी मानते हैं.
यह अवश्य कि वाक्य संयोजन और सटीक हो सकता है. चू‘ंकि आदरणीय मिथिलेशभाई ने शिल्पगत चर्चा हेतु कहा है, मैं कुछ प्रयास करता हूँ. जैसे --
“आज बहुत लेट हो गई ? ’मम्मा ऑफिस से कब आएगी’, पूछ-पूछ कर परी ने कबसे परेशान कर रखा है..”
सासू माँ की बगल में सुनंदा की तीन साल की बेटी चुपचाप अपनी गुड़िया के साथ खेल में मग्न थी.
“मधुकर भैया है न, इनके दोस्त, उनके यहाँ बेटी हुई है, बस हॉस्पिटल गई थी. इनका फोन आया था कि वो नहीं जा पाएंगे इसलिए मुझे जाना पड़ा.” - सुनंदा की आवाज़ सुनकर परी दौड़ती हुई अपनी मम्मा से लिपट गई.
“अरे उसकी तो पहले ही एक लड़की है न ?... काश इस बार लड़का हो जाता.. अच्छा रहता.” कहती हुई सासू माँ ने सुनंदा से लिपटी हुई परी को कुछ ऐसी नज़रों से देखा कि सुनंदा भीतर तक काँप गई.
आदरणीया राजेश दीदी, लघुकथा की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सही कहा आपने इस मानसिकता का बदलना बहुत जरुरी है. सादर
आदरणीया तनूजा जी, लघुकथा के मर्म पर रचना को अनुमोदित करती काव्याभिव्यक्ति और सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार..
बहुत अच्छी लघुकथा हुई मिथिलेश भैया ,बस यही चिंता है न जाने ये मानसिकता कब बदलेगी | बहुत- बहुत बधाई|
बिटिया जीवन माँग रही उसको भी जीने दो ना
जीवन सुधा यह मधुमय अमृत उसको भी पीने दो ना
नवल मृदुल सुकुमार कोंपलें खिले सजे विश्व प्रांगण
बिटिया की आवक में भी उल्लसित हो जग जीवन (तनूजा)
बहुत मर्मस्पर्शी रचना है आदरणीय मिथिलेश जी
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघुकथा के मर्म तक पहुँच कर एक सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार.
यह भी अवश्य है कि इस विधा के लिए भी यह पुराना विषय है और इसी मंच पर इस विषय पर रचनाएँ प्रस्तुत हुई है. फिर भी विधा के अभ्यास के क्रम में इस विषय को एक नए दृष्टिकोण से सहज घटनाक्रम में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है. लघुकथा के शिल्प पर भी गुनीजनों से मार्गदर्शन अपेक्षित है. सादर
आदरणीय मिथिलेश जी,एक लडकी की मॉ होने के भय का बखूबी वर्णन किया है !लडकी की मॉ होना जैसे कोई गुनाह हो!हार्दिक बधाई!
आदरणीय ओमप्रकाश जी लघुकथा पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार
आदरणीय आनंद सागर पांडे जी लघुकथा पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार
आदरणीय विनय जी लघुकथा पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार
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