अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|
सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||
कल तक जो थी मित्रता, आज न हमें सुहाय|
तूने छेड़ा है मुझे, अब खुद लियो बचाय||
सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|
बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||
शहर कभी गुलजार था, धरम बीच क्यों आय|
कल तक जिससे प्यार था, फूटी आँख न भाय!!
पत्थर गोली गालियाँ, किसको भला सुहाय|
अमन चैन से सब रहें, फिर से गले लगाय ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
जवाहर लाल सिंह
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब! कोशिश करता हूँ पर अभी और मिहनत करने की जरूरत है.
आदरनीय जवाहर भाई , आपके दोहों पर सुन्दर सार्थक चर्चा हुई है । दोहों के लिये आपकोअ हार्दिक बधाइयाँ । आ, मिथिलेश जी की सलाहों पर अमल कीजियेगा ।
आदरणीय जवाहर जी आपकी सदाशयता के लिए हार्दिक आभार
यह भी है कि इस मंच पर हम सभी समवेत सीख रहे है. इसलिए आपका ये कहना -//आपने मुझे अपना शिष्य बना लिया// उचित नहीं है. आप इस मंच पर मेरे अग्रज है. मैंने छंद लिखना इसी मंच पर सीखा है और अभी अभ्यासी ही हूँ.
आप मंच के पुराने सदस्य है अतः नए सदस्य आपकी प्रस्तुति को सदैव महत्त्व देंगे और प्रेरित भी होंगे अतः उनके लिए उचित मानक अनुसार रचना करना भी हमारा दायित्व है. इसलिए ये बातें साझा की है. ये मेरा स्वयं का अनुभव है कि जब मंच पर आया था तो सबसे पहले अपने अग्रजों की रचनाओं का पाठ किया उसी के अनुरूप रचनाओं के लिए अभ्यास किया है. आज भी वाही प्रक्रिया जारी है. सादर
आदरणीय सुशील सरना जी, सुझावों का हमेशा स्वागत करता हूँ, यह सीखने-सिखाने का मंच है हमलोग एक दोसरे से ही सीखते हैं इसलिए अन्यथा लेने का सवाल ही नहीं है. मैंने आदरणीय मिथिलेश जी के सुझाव और सुधार को सहृदयता से अपनाया है. मेरा अनुरोध रहेगा कि आप सभी मेरी त्रुटियों से जरूर अवगत कराएँ ...छंद रचना, गजल, शेर आदि बहुत आसन नहीं है जैसा हम समझते हैं ...सुधार की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है ... सादर! आपके द्वरा बताई गए त्रुटियों की तरफ मेरा ध्यान गया है ..कोशिश करूंगा आगे ऐसी गलतियाँ न हो
आदरणीय सुंदर भावों की इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई हालांकि प्रस्तुति में कई चरणों में मात्रिक/शब्द संयोजन का दोष है जैसे :
अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|
सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||
इसमें प्रथम पंक्ति के विषम चरण में १३ के स्थान पर १२ मात्राएँ हो रही हैं।
इसी प्रकार द्वितीय पंक्ति के विषम चरण में १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हो रही हैं।
प्रथम पंक्ति के विषम चरण का शब्द संयोजन 4432 ,द्वतीय पंक्ति के विषम चरण का शब्द संयोजन 33232 के अनुरूप होना चाहिए।
सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|
बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||
प्रस्तुत दोहे की प्रथम पंक्ति के सम चरण में ११ के स्थान पर १२ मात्राएँ हो रही हैं।
द्वितीय पंक्ति के सम चरण में भी ११ के स्थान पर १२ मात्राएँ हो रही हैं।
शेष आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के मार्गदर्शन का अनुसरण कर दोहों की ख़ूबसूरती बधाई जा सकती हैं।
इस सुंदर भावपूर्ण प्रयास एवं प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। हो सकता है मुझसे भी कहीं गलती हों अतः कृपया किसी बात को अन्यथा ने लेवें मैं भी आपकी तरह इस विधा इस मंच के गुणीजनों का शिष्य हूँ।
आदरणीय मिथिलेश जी, सादर अभिवादन! सुझाव के साथ सुधार कर आपने मुझे अपना शिष्य बना लिया ...आगे भी कोशिश जारी रहेगी और आपके मार्ग दर्शन की अपेक्षा रक्खूँगा ... बहुत बहुत आभार!
आदरणीय जवाहर सिंह जी, सामयिक संवेदनाओं से गुजरते हुए आपका शाब्दिक किया गया प्रयास भाव स्तर पर अच्छा हुआ है इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
लेकिन यह भी अवश्य है कि सामयिक विषय पर लिखते समय भाषा और शब्द चयन भी सामयिक होता तो दोहावली और अधिक प्रभावकारी होती. आय, जाय, बजाय, बचाय, लगाय, सुहाय आदि शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल की भाषा या काव्य की किसी दूसरी विधा में नहीं होता न ? फिर क्यों दोहा छंद की रचना में हिंदी भाषा का प्राचीन या आरंभिक स्वरुप आ जाता है. इस भाषा का प्रयोग कम से कम आज तो नहीं होता. शब्दों का यह रूप भक्तिकाल, रीतिकाल तक प्रचलित था. अब जैसा इन शब्दों का रूप है वैसे ही इनका प्रयोग उचित है. यह मेरी व्यक्तिगत राय है. इन दोहों को कुछ यूं भी कहा जा सकता था-
कभी न जोड़ो धर्म को, अपराधों के साथ
ऐसे तो क़ानून को, मत लो अपने हाथ
क्यों यारों के बीच में, आज हुआ है बैर
जिसने छेड़ा है नगर, स्वयं मनाये खैर
सूनी सड़कें, सायरन, पुलिस, खौफ, बन्दूक
बच्चे तरसे दूध को, क्या ममता की चूक ?
नगर कभी गुलज़ार था, उफ़ अधर्म की रीत
आँखों का काँटा बनी, कल तक थी जो प्रीत
पत्थर, गोली, गालियाँ, किसको भाती यार
अमन चैन से सब रहें, फिर से बांटे प्यार
भाव और शब्द आपके ही है केवल विन्यास थोड़ा बहुत बदला है. सादर
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