है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया
मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया
साथ निभाना फ़ितरत मेरी, क्या ये मेरी गलती है सबने मेरा हिस्सा लूटा और मुझे बदनाम किया
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Comment
आ० नादिर भाई जी ,बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने दिल से बधाई लीजिये |
जनाब नादिर भाई काफी दिनों बाद आपकी किसी रचना से गुज़र रहा हूँ बहुत अच्छा लगा बेहतरीन ग़ज़ल है दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमायें
आदरणीय मिथिलेश सर बहुत शुक्रिया आपका, सीखने की कवायद जारी है हमारी ...
चलिए आपकी तरही मुशायरे की ग़ज़ल आज पढने मिल गई.बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है.बहुत अच्छा मतला हुआ है. गिरह भी खूब लगाईं है. इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है...
आदरणीय समर साहब,गिरीराज जी इस्लाह और दाद के लिए शुक्रिया।
तरही मुशायरे में शामिल न हो सकने का अफ़सोस है| शनिचर को दिन भर नेट नहीं आया, रात १२ बजे तक कंप्यूटर ऑन रखे रहे कि शायद आ जाये मगर उसे न आना था सो न आया। बहुत हाथ पैर मारे, कम्प्लेन भी किये तब कहीं इतवार को ठीक हुआ । खैर इंसानी बनाई चीज़ है वक़्त - बेवक़्त धोका तो देगा ही।
आदरणीय नादि खान भाई , शायद आपने मुशाय्रे के बाद गज़ल कही है ? बहुत खूबसूरत अशआर हुये हैं , आपकोअ ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
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