For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही गज़ल (रात को रो-रो सुबह किया या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया)

है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया

दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया

 

मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया 

फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया

रब से तुझको हरदम माँगा दिल भी तेरे नाम किया

फिर भी तूने मेरे हक में बस झूठा इल्ज़ाम किया 

 

साथ निभाना फ़ितरत मेरी, क्या ये मेरी गलती है

सबने मेरा हिस्सा लूटा और मुझे बदनाम किया

 

खूब निभायी रस्म वफ़ा की सबकी खातिर खूब लुटे

खामोश रहे, सौ ज़ुल्म सहे, खुद के सर इल्ज़ाम किया

बस मेरे हालत न बदले जाने कितने दिन गुज़रे

रात को रो-रो सुबह किया या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया

      

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 9:22pm

आ० नादिर भाई जी ,बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने दिल से बधाई लीजिये |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 9:03pm

जनाब नादिर भाई काफी दिनों बाद आपकी किसी रचना से गुज़र रहा हूँ बहुत अच्छा लगा बेहतरीन ग़ज़ल है दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमायें

Comment by नादिर ख़ान on July 27, 2015 at 6:04pm

आदरणीय मिथिलेश सर बहुत शुक्रिया आपका, सीखने की कवायद जारी है हमारी ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:34pm

चलिए आपकी तरही मुशायरे की ग़ज़ल आज पढने मिल गई.बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है.बहुत अच्छा मतला हुआ है. गिरह भी खूब लगाईं है. इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है...

Comment by नादिर ख़ान on July 27, 2015 at 3:40pm

आदरणीय समर साहब,गिरीराज जी इस्लाह और दाद के लिए शुक्रिया।

तरही मुशायरे में शामिल न हो सकने का अफ़सोस है| शनिचर को दिन भर नेट नहीं आया, रात १२ बजे तक कंप्यूटर ऑन रखे रहे कि शायद आ जाये मगर उसे न आना था सो न आया। बहुत हाथ पैर मारे, कम्प्लेन भी किये तब कहीं इतवार को ठीक हुआ । खैर इंसानी बनाई चीज़ है वक़्त - बेवक़्त धोका तो देगा ही।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 27, 2015 at 1:01pm

आदरणीय नादि खान भाई , शायद आपने मुशाय्रे के बाद गज़ल कही है ?  बहुत खूबसूरत अशआर  हुये हैं , आपकोअ ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on July 27, 2015 at 12:00am
जनाब नादिर ख़ान जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,मुशायरे में क्यूँ पोस्ट नहीं की ?,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,एक मिसरे की तरफ़ तवज्जो दिलाना चाहूँगा :-

"ख़ामोश रहे, सौ ज़ुल्म सहे, खुद के सर इल्ज़ाम किया"

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,हो सकता है ये typing mistake हो ,देख लीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service