“मम्मा मेरे लिए ब्रेकफास्ट में केवल फ्रूट सलाद बनाना.”
“आज फ्रूट्स नहीं है... कुछ और बना दूं ?”
“नहीं” - परी ने मना कर दिया क्योकिं पार्टी में हैवी डाईट के कारण ब्रेकफास्ट लाईट करना चाहती थी. तभी बेडरूम से पापा बाहर आये. अपनी इकलौती बेटी को देर रात से घर आने के लिए समझाते रहें और मॉर्निंग-वाक के लिए निकल गए.
“मम्मा... ये पापा सुबह-सुबह चालू हो जाते है, ये करो, ये मत करो.... ये लेट नाईट पार्टीज हमारा कल्चर नहीं है. ब्ला ब्ला ब्ला.......”
“तुम्हारी केयर करते है पापा, इसलिए समझाते है.”
“ये क्या... हमेशा कल्चर-कल्चर की स्पीच देते रहते है. लड़की हूँ न इसलिए. वैसे भी पापा की जेनरेशन ही ऐसी है जो लड़की की बर्थ से ही परेशान हो जाते है. पापा को बेटा चाहिए होगा... है न माँ?”
“छी ! कैसी बात करती है पगली....? इधर आ, बैठ, तुझे एक बात बताती हूँ.”
“कौन सी बात मम्मा....”
“हम्म्म..... हमें शादी के लिए घरवालों को, मतलब तुम्हारे दादा-दादी और नाना-नानी को, मनाने में पूरा एक साल लगा. उन्हीं दिनों में ये अक्सर कहते थे कि अनु शादी के बाद मुझे तुम्हारे जैसी ही सुन्दर बिटिया चाहिए...... तुम्हारा नाम तक सोच लिया था....परी....” मम्मा देर तक बताती रही.
पापा मॉर्निंग-वाक से लौटकर आये तो उनके हाथों में फलों से भरी दो थैलियाँ थी. उन्होंने थैलियाँ डाइनिंग टेबल पर रखी और न्यूज़-पेपर उठाकर, अपने कमरें में चले गए.
परी, मम्मा की आँखों में विश्वास की बुनियाद को और मज़बूत होते देखती रही.
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय विनय जी, लघुकथा के मर्म को मेरे साथ साथ महसूस करते हुए एक सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार. आप एक सशक्त लघुकथाकार है, इसलिए आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है. अनुभूति को साझा करते हुए, लघुकथा का मुखर और आत्मीय अनुमोदन करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ . सादर
आदरणीया प्रतिभा जी लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ...
आदरणीय विनोद जी, लघुकथा की मुखर प्रशंसा और उत्साहवर्धन करती सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभारी हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय हर्ष जी, आपकी आत्मीय प्रशंसा और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आपने रचना के मर्म को महसूस करते हुए मेरे कथ्य को अनुमोदित किया है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीया नीता कसार जी, //कथा में कितनी शिद्दत के साथ आपने बेटी के मन में पिता की सही छवि प्रस्तुत की है ।// जैसी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना के मर्म को महसूस करते हुए सराहना हेतु हार्दिक आभारी हूँ...
आदरणीया कांता जी आपने सही कहा- //यह है वास्तव में आज की बेटियाँ और यही असली छवि है पिता के आस्तित्व की //.लघुकथा के तक पहुंचकर एक सार्थक प्रतिक्रिया और सराहना से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार...
वाह , वाह , वाह , बहुत ही संजीदा लेखन | आँखों में आंसू आ गए पढ़ते हुए , लगा ही नहीं कि लघुकथा पढ़ रहे हैं | किसी अपने घर में बैठ कर ये दृश्य देखने जैसा लगा इसे पढ़ते हुए , दिल जीत लिया आपने | और बिलकुल सच लिखा है आपने , ये आजकल के बहुत से पिताओं की कथा है | एक बार फिर दिल से बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.
इस परी को तो परी देश मिल गया , काश i हर परी को मिल पाता, Iबहुत अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० मिथिलेश जी
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, एक मुक्कमल लघुकथा बनी है। अक्सर यह देखने में आ रहा है लघुकथा के लिए जबरदस्ती घटनाओं को इजाद किया जाता है लेकिन आपने जिस प्रकार शब्दों को एक माला में पिरोया है कथा जीवंत हो उठी है। मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करें।
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