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गिरने की कीमत (लघुकथा)

दो गायक महीनों बाद सवेरे की सैर पर साथ निकले|

एक ने पूछा, "तुमने शास्त्रीय संगीत छोड़ कर ये घटिया राग अलापना क्यों शुरू किया?"

दूसरे ने कहा, "शास्त्रीय संगीत ने आत्मा को चैन और अमन की दौलत दी, लेकिन मेरी पत्नी और बच्चे भूखे रहे| अब मेरे गानों को गली में घूमने वाले गाते हैं, पान की दुकानों और वाहनों में बजता है, बच्चे उन पर नृत्य करते हैं.... और अब देखो कल ही ये खरीदा है|"

उसने एक बड़े से मकान की ओर इशारा किया, जिसे देखते ही पहले के फटे कपड़ों में से शास्त्रीय संगीत की आत्मा

निकल छूटी|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2015 at 7:26pm

अच्छी आज के लोगों के टेस्ट पर सही कटाक्ष करती लघु कथा उस कला का क्या करें जो पेट न भर सके भूख अच्छों अच्छों के उसूलों को साइड में रख देती है बहुत बढ़िया प्रस्तुति दिल से बधाई लीजिये आ० चंद्रेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 12:33pm

आदरणीय चंद्रेश जी हमेशा की तरह एक शानदार लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

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