उस चित्रकार की प्रदर्शनी में यूं तो कई चित्र थे लेकिन एक अनोखा चित्र सभी के आकर्षण का केंद्र था| बिना किसी शीर्षक के उस चित्र में एक बड़ा सा सोने का हीरों जड़ित सुंदर दरवाज़ा था जिसके अंदर एक रत्नों का सिंहासन था जिस पर मखमल की गद्दी बिछी थी|उस सिंहासन पर एक बड़ी सुंदर महिला बैठी थी, जिसके वस्त्र और आभूषण किसी रानी से कम नहीं थे| दो दासियाँ उसे हवा कर रही थीं और उसके पीछे बहुत से व्यक्ति खड़े थे जो शायद उसके समर्थन में हाथ ऊपर किये हुए थे|
सिंहासन के नीचे एक दूसरी बड़ी सुंदर महिला बेड़ियों में जकड़ी दिखाई दे रही थी जिसके वस्त्र मैले-कुचैले थे और वो सर झुका कर बैठी थी| उसके पीछे चार व्यक्ति हाथ जोड़े खड़े थे और कुछ अन्य व्यक्ति आश्चर्य से उस महिला को देख कर इशारे से पूछ रहे थे "यह कौन है?"
उस चित्र को देखने आई दर्शकों की भीड़ में से आज किसी ने चित्रकार से पूछ ही लिया, "इस चित्र में क्या दर्शाया गया है?"
चित्रकार ने मैले वस्त्रों वाली महिला की तरफ इशारा कर के उत्तर दिया, "यह महिला जो अपनी पहचान खो रही है..... वो हमारी मातृभाषा है...."
अगली पंक्ति कहने से पहले वह कुछ क्षण चुप हो गया, उसे पता था अब प्रदर्शनी कक्ष लगभग खाली हो जायेगा|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
रचना को पसंद कर स्नेहिल टिप्पणी द्वारा मेरा मनोबल बढाने हेतु आप सभी का हृदय से आभारी हूँ, आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सर, आदरणीया pratibha pande जी, आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सर, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आदरणीय shree suneel जी, आदरणीया shashi bansal जी, आदरणीया kanta roy जी, आदरणीया rajesh kumari जी | निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें|
लघु कथा के माध्यम से अपनी हिंदी भाषा की वास्तविक दशा को बखूबी दर्शाया है बहुत सार्थक लघु कथा है दिल से बधाई लीजिये इस संकल्प के साथ की हम लेखकों को सतत प्रयास रत रहना है अपनी हिंदी को ऊपर सिंहासन पर सुशोभित करने के लिए|
"उसे पता था अब प्रदर्शनी कक्ष लगभग खाली हो जायेगा|",----बहुत ही सादगी से गहरी बात कही है आपने चंद्रेश जी इस लघुकथा के माध्यम से । इस सशक्त लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें । सादर ।
इस सशक्त प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई....
चंद्रेश जी --आपकी इस बेमिसाल कविता पर टिप्पणियों का अभाव मुझे चकित् कर रहा है . मातृ भाषा की दुर्दशा का ऐसा सांकेतिक चित्रण दुर्लभ है . मेरी और से बधायी .
बिलकुल यही हालत है आज हमारी मातृभाषा की ,बहुत सशक्त लघु कथा लिखी है आपने आदरणीय चंद्रेश जी बधाई आपको
हार्दिक बधाई आदरणीय चन्द्रेश छतलानी जी, आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष में एक बेहतरीन लघुकथा प्रस्तुत की है जो कि सच्चाई का आइना दिखाने में पूर्ण रूप से सफ़ल हुई है!
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