आम बजट के सत्र के बाद लोकतांत्रिक सरकार ने लोकतंत्र के एक नये तरीके इन्टरनेट से बजट पर एक सर्वे द्वारा जनता की राय मांगी|
कोई भी उसे खोलता तो सबसे पहले लिखा मिलता, "आपके अनुसार बजट कैसा है?" जिसके तीन विकल्प थे - सर्वमान्य, औसत-मान्य और अमान्य| जो कोई प्रथम दो विकल्प में से कोई एक चुनता, नाम, पता और टिप्पणी पूछी जाती, लेकिन यदि कोई अंतिम विकल्प को चुनता तो उससे पूछा जाता, "इसका उत्तरदायी कौन है?" इसके दो विकल्प थे - सरकार और जनता|
जिस-जिसने जनता को चुना उन्हें एक अमान्य बजट का दोषी मानकर दण्डित किया गया और जिन्होंने सरकार को चुना उन्हें झूठ बोलने के लिए|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
बजट पर या सरकार की किसी योजना पर आपका मत सरकार सापेक्ष चाहती है, और अपने को लोकतंत्र की सरकार कहती है | अपरोक्ष रूप से नकारात्मक बोलने पर पाबंदी लगाने के सरकारी तरकीब है | रिपोर्ट जैसी लगने के बाद भी लघु कथा में सुंदर सन्देश यही है |
आ० चंद्रेश जी क्या सचमुच इसे कथा के तत्व हैं मुझे लगा कौई अपनी रिपोर्ट दे रहा है मेरा ऐसा मत है .सादर .
बहुत सशक्त और प्रासंगिक लघुकथा बनी है बधाई आपको इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी
हार्दिक बधाई चन्द्रेश जी !बेहद सशक्त और समयानुकूल प्रस्तुति!बहुत करारी चोट की है आज की अर्थ व्यवस्था पर!
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