वो अकेली बैठी रो रही थी, जंगली जानवरों से उसका रोना बर्दाश्त नहीं हुआ, वो उसके पास जाकर उसका दुःख पूछने लगे|
उसने कहा, "मैं उससे बहुत प्रेम करती हूँ, लेकिन उसे केवल मेरी खूबसूरती से ही प्रेम है, और वो ही मेरी सुन्दरता नष्ट कर रहा है, पता नहीं कैसे-कैसे रासायनिक द्रव और विष समान कचरा युक्त जल मुझे पीना होता है, उसके फैलाये धुंए से मैं क्षीण और कुरूप होती जा रही हूँ| उसके मचाये शोर से बहुत घबरा जाती हूँ, क्या करूँ?"
फिर उसने तितली से कहा, "तुम जिन फूलों पर जाती थी, उसे भी तोड़ देता है|"
भालू से कहा, "शहद के छत्ते भी वही नष्ट कर रहा है|"
और बगुले से कहा, "पानी की मछलियाँ भी वो ही ले जाता है|"
और हाथी से कहा, "तुम दूर ही रहना, नहीं तो तुम्हें बेच देगा|"
इतने में आदमी आ गया, उसे देखकर सारे जानवर भाग गये, आदमी ने उसे देखा, उसके पास गया और कहा, "तुम कितनी खूबसूरत हो..."
और यह जानते हुए भी कि उसका शोषण होगा, 'प्रकृति' चुपचाप उसका हाथ पकड़ कर चल दी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हृदय से आभार आदरणीय विजय निकोरे जी सर !
इस अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय चंद्रेश जी।
आदरणीया Rahila जी, आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani साहब, आदरणीया Nita Kasar जी, आदरणीया kanta roy जी, आदरणीया meena pandey जी, आदरणीय Sunil Verma जी, आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया, आपने रचना पर टिप्पणी कर मेरे मनोबल को बहुत बढाया है| निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें| सादर,
बहुत बधाई इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी
और यह जानते हुए भी कि उसका शोषण होगा, 'प्रकृति' चुपचाप उसका हाथ पकड़ कर चल दी|-----गज़ब की चीज लिख दी है आपने आदरणीय चंद्रेश जी , पढ़कर एकदम से स्तब्ध हो उठी। ढेरो बधाई आपको।
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