For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल -- सुलभ अग्निहोत्री

बहर - 2212 1212   22 1212

वो भ्रम तुम्हारे प्यार सा बेहद हसीन था
सपनों के आसमान की मानो जमीन था

सारी थकान खींच ली गोदी में लेटकर
बच्चा वो गीत रूह का ताजातरीन था

हर खत में अपनी खैरियत, उसको दुआ लिखी
माँ यह कभी न लिख सकी, कुछ भी सही न था

मन, प्राण, आँख द्वार पर, बेकल बिछे रहे
कुनबा तमाम जुड़ गया, आया वही न था

अँजुरी मेरी बँधी रही और सारा रिस गया
वो प्यार रेत से कहीं ज्यादा महीन था

सूरज बगैर हर दिशा को रौदता रहा
जो शख्स धुंध बन गया, बेहद जहीन था

मैं फलसफों के व्यूह में, बस फँस के रह गया
वो सिलसिला शुरू हुआ तो अन्तहीन था

मैंने किसी के घाव पे मरहम लगा दिया
तुम क्यों बिखर गए तुम्हें मुझ पर यकीन था

----- सुलभ अग्निहोत्री

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1167

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on August 9, 2015 at 11:01am

Samar kabeer जी ! एक मिसरा भी बहर से खारिज नहीं है। कृनया बहर देख लें। जहाँ तक सवाल काफिये का है - तो मेरा निश्चित मत है कि तुक या काफिया भी उच्चारणा और ध्वनि का विषय है, न कि शब्द और उसके अर्थ का। उसी तरह जैसे मात्रा-गणना (तक्तीय) उच्चारण का विषय है, मिसराा लिखा कैसे जाएगा यह नहीं देखा जाता। इस दृष्टिकोण से ‘सही न’ और ‘वही न’ में मुझे कोई दोष नहीं दिखाई देता।
गजल की क्लास मैं पढ़ चुका हूँ, जितनी आत्मसात करने लायक थी कर चुका हूँ।
एक विनम्र सलाह - देवनागरी में उठाऐं गलत है, इसे उठायें या ‘उठाएँ’ लिखा जाएगा। कृपया सुधार लें। -- सादर !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 9, 2015 at 10:49am

मिथिलेश वामनकर जी मेरी बहर तो वही है जो मैंने लिखी है,हाँ पढ़ उसे आप उस बहर में भी सकते हैं जो आपने बताई है - बस चैथे शेर में पर की जगह पे करना पड़ेगा।
देखिये जान गोरखपुरी जी ने सही पकड़ी थी।

Comment by Samar kabeer on August 8, 2015 at 11:37pm
जनाब सुलभ अग्निहोत्री जी,आदाब,ग़ज़ल की कोशिश अच्छी है लेकिन कहीं कहीं मिसरे बह्र से ख़ारिज हैं और कुछ शैरों में क़ाफ़िये भी सही नहीं है ,"ज़हीन" और "हसीन" क़ाफ़िये के साथ "वही न" क़ाफ़िया ,ये क्या है ? देख लीजियेगा,कृपया ओबीओ पर ग़ज़ल की कक्षा का लाभ उठाऐं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 8, 2015 at 12:54pm
आपकी ग़ज़ल इस बह्र में है भाई जी
221 2121 1221 212
Comment by Sulabh Agnihotri on August 8, 2015 at 12:30pm

बहुत-बहुत आभार Harash Mahajan जी ! 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 8, 2015 at 12:29pm

बहुत-बहुत आभार जान गोरखपुरी जी ! जी, आपका अन्दाजा सही है बहर के संबंध में।

Comment by Sulabh Agnihotri on August 8, 2015 at 12:28pm

आपके निर्देश का पालन कर दिया है मिथिलेश वामनकर जी !

Comment by Harash Mahajan on August 6, 2015 at 8:07pm


आ० सुलभी जी अति सुंदर पेशकश सभी शेर उत्तम ...दाद हाज़िर ..!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 6, 2015 at 7:40pm

लाजव़ाब! लाजव़ाब! क्या कहने जिंदाबाद गज़ल हुयी है दाद ही दाद पेश है ! आ० सुलभ जी आ० मिथलेश सर की बात पर अवश्य गौर फरमाएं! मंच पर मेरे जैसे गज़ल सीखने वाले बहुत से नवाभ्यासी है..बह्र लिखने से हमारे लिए आसानी हो जाती है! जहाँ तक मै समझ पा रहा हूँ  गज़ल की बह्र  २२१२ १२१२ २२१२ १२ है!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 4:21pm

आपसे विशेष निवेदन है कृपया बह्र / वज्न लिखने की कृपा करें..... ये मंच की परंपरा रही है जो अब अनुशासन की श्रेणी में माना जाता है. सादर निवेदन पुनः पुनः 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service