"बधाई कर्नल कपूर i बेटे ने नाम रौशन कर दिया " कमांडेंट साहब ने गर्म जोशी से कर्नल से हाथ मिलाते हुए कहा
"थैंक्यू सर "
आकाश देख रहा था अपने पिता को जो गर्व से फूले फिर रहे थे अपने ऑफिसर्स दोस्तों के बीच और सबकी बधाइयाँ ले रहे थे
उसके काव्य संकलन को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला था ,हफ्ते भर से टीवी ,अखबारों में उसी के चर्चे थे
वो सोचने लगा .. ,' उसके जैसा नाकारा बेटा जो आर्मी में नहीं गया , जिसने हिंदी साहित्य विषय चुना और जो कविताएँ लिखता है वो भी हिंदी में ... आज अचानक कैसे सबके आकर्षण का केंद्र बन गया ... और पापा .. जो पहले उसे लोगों से मिलवाने में भी शर्मिंदगी महसूस करते थे वो ही आज ....'
गिलासों के टकराने की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा , सब उसकी उस किताब के नाम से जाम टकरा रहे थे जिसका शायद पहला पन्ना भी किसी ने नहीं पलटा था और जो गिलासों के साथ एक कोने में पड़ी थी.
सामने शेल्फ में उसके पिता की ढेरों चमकती हुई ट्रोफ़ियां सजी थीं , उसे लगा वो भी एक ट्रॉफी है जिसे कर्नल साहब अब शान से सब को दिखा सकते हैं, .......
.मौलिक व् अप्रकाशित
. .
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी के साथ पूर्ण सहमति साथ ही लघुकथा के माध्यम से आपने जो सन्देश देना चाहा है, वह भी यथेष्ठ है! सादर अभिनन्दन!
आदरणीय प्रतिभा जी,हार्दिक बधाई,आपने एक लेखक की उपयोगिता को बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है वरना तो लोग आजकल तरक्की पसंद लोगों की श्रेणी में लेखक को गिनते ही नहीं!पुनः बधाई!
आदरणीया प्रतिभा जी, इस लघुकथा को कल से कई बार पढ़ चुका हूँ. जिस गहनता से आपने कथ्य के मर्म को शाब्दिक किया है वह मुग्ध करने वाला है. आपने जिस सूक्ष्म दृष्टि से तथ्य को पकड़कर कथानक बुना है, देखकर चकित हूँ. लघुकथा धीरे धीरे आगे बढती है और अपने चरमोत्कर्ष पर वही झटका देती है जी किसी भी लघुकथा से अपेक्षा की जाती है. देर तक आपकी सधी हुई कलम पर मुग्ध होता रहा हूँ. लघुकथा जिस सांद्रता से सन्देश संप्रेषित करती है वो एक संवेदनशील पाठक के मन को आंदोलित करने के लिए पर्याप्त है. कथानक को आपने संतुलित वाक्य-विन्यास से रोचक भी बना दिया. मेरे विचार से इसे सफल लघुकथा कहा जाता है. आपको इस शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई और आपका आभार मेरे जैसे लघुकथा के नए अभ्यासी के लिए सीखने को ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए.
सादर
रचना पर आने के लिए आपका आभार आ० ओमप्रकाश जी
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