ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा).......
आज सुशील अपने बेटे के बर्थडे पर बहुत खुश था। कवि होने के नाते उसने अपने पितृभाव को तो कागज़ पर उतार दिया था लेकिन फिर भी सोचा कि इसके साथ अगर एक ग्रीटिंग कार्ड भी दे दिया जाए तो बेटा खुश हो जाएगा। ग्रीटिंग कार्ड की बड़ी सी शॉप में जाकर वो कार्ड देखने लगा। कुछ देर के बाद दुकानदार ने पास आकर कहा '' सर, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ। '' सुशील ने युवा जोड़ों की भीड़ में सकपकाते हुए कहा '' अरे हाँ , देखिये दरअसल मुझे बाप द्वारा बेटे को बर्थडे पर दिए जाने वाले कार्ड की जरूरत है लेकिन यहां तो लगता है शायद सिर्फ युवाओं के प्रेम प्रदर्शन से सम्बंधित ही कार्ड हैं , रिश्तों के कार्ड नहीं। '' दुकानदार कुछ हैरत भरी नज़र से हमें ताकने लगा फिर बोला '' आपने ठीक कहा है सर। आजकल रिश्ते हैं कहाँ और जो थोड़े बहुत बचे हैं वो आधुनिकता की चकाचौंध में अंतिम सांसें ले रहे हैं। ठहरिये , मैं आपके लिए कहीं से कार्ड ढूंढ कर लाता हूँ। '' कुछ देर में दुकानदार एक पुराना सा छोटा कार्ड सुशील के हाथ में देकर कहने लगा '' लीजिये सर , ये कार्ड मिल गया। पुराना है लेकिन इसमें रिश्तों की गंध वही है। '' ''ये तो बहुत छोटा है कोई बड़ा कार्ड नहीं है क्या ?'' सुशील ने कार्ड लेते हुए कहा। दुकानदार हँसते हुए बोला '' सर जैसे जैसे रिश्ते सिकुड़ते जा रहे हैं , कार्ड भी सिकुड़ते जा रहे हैं .... वो वक्त दूर नहीं कब रिश्तों की मिठास की तरह कार्ड भी खो जाएंगे । ''
''तुम ठीक कह रहे हो भाई। सुशील ने कार्ड हाथ में कसकर पकड़ते हुए कहा।'' फिर हाथ के लिफ़ाफ़े में कैद रिश्ते को ले कर घर की तरफ चल पड़ा ।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय VIRENDER VEER MEHTA जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय rajesh kumari जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Omprakash Kshatriya जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Sulabh Agnihotri जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सच में रिश्ते सिकुड़ते ही जा रहे हैं भावनाएं ही दम तोड़ रही हैं ..बहुत गंभीर रचना हुई दिल से बधाई आपको आ० सुशील सरना जी |
आदरणीय सुशील जी,हार्दिक बधाई, बहुत मर्म स्पर्शी लघुकथा बनी है!
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