मील के पत्थर....
पत्थर पर तो हर मौसम
बेअसर हुआ करता है
दर्द होता है उसको
जिसका सफ़र हुआ करता है
सिर्फ दूरियां ही बताता है
निर्मोही मील का पत्थर
इस बेमुरव्वत पे कहाँ
अश्कों का असर हुआ करता है
हर मोड़ पे मुहब्बत को
मंजिल करीब लगती है
हर मील के पत्थर पे
इक फरेब हुआ करता है
कहकहे लगता है
दिल-ऐ-नादाँ की नादानी पर
हर अधूरे अरमान की
ये तकदीर हुआ करता है
कितनी सिसकियों से
ये रूबरू होता है मगर
पत्थर तो पत्थर है
ये अपनी तासीर से
मजबूर हुआ करता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
पत्थर तो पत्थर है
ये अपनी तासीर से
मजबूर हुआ करता है
मगर आपने भी सुना होगा-
कोई पत्थर की मूरत है
किसी पत्थर में मूरत है
पत्थर भी जल की धारा से चोट खाते खाते रेट में तब्दील हो जाता है और मील का पत्थर मंजिल की दूरी तो बताते हैं.
सादर!... नजरिया है अपना देखने का और कहने का, आदरणीय सरना जी!
आदरणीय laxman dhami जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय pratibha pande जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Harash Mahajan जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आ० भाई सुशील जी , भावपूर्ण रचना हुई है हार्दिक बधाई .
पत्थर अंततः पत्थर ही होता है , लाजवाब बात कही आदरणीय सुशील भाई ! हार्दिक बधाई आपको ।
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