For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर सत्य को अंगीकार...

कर सत्य को अंगीकार  ....

आवरण से श्रृंगार किया
माया से किया प्यार
अन्तकाल संसार ने
सब कुछ लिया उतार
अद्भुत प्रकृति है जीव की
ये भटके बारम्बार
लौ लगाये न ईश से
पगला बिलखे सौ सौ बार
शीश झुकाये मन्दिर में
हो जैसे कोई मज़बूरी
अगरबत्ती भी यूँ जलाए
जैसे ईश पे करे उपकार
कपट कुण्ड में स्नान करे
और विकृत रखे विचार
कैसे मिलेगा जीव तुझे
उस पालनहार का प्यार
सत्य धर्म है,सत्य कर्म है
सत्य जीवन आधार
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 436

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 4:00pm

 आदरणीय  pratibha pande जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on August 10, 2015 at 7:12pm

अगरबत्ती भी यूं जलाये जैसे ईश पर करे उपकार ,कितनी सच्ची पंक्तियाँ हैं बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on August 9, 2015 at 9:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 9, 2015 at 1:17pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सार्थक सन्देश देती पंक्तिया कही हैं , रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on August 7, 2015 at 11:49am

आदरणीय  Dr. Vijai Shankerजी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 10:00pm
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार
बहुत सुन्दर विचार , आदरणीय सुशील सरना जी। बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर
Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 7:42pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 4:23pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service