For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर सत्य को अंगीकार...

कर सत्य को अंगीकार  ....

आवरण से श्रृंगार किया
माया से किया प्यार
अन्तकाल संसार ने
सब कुछ लिया उतार
अद्भुत प्रकृति है जीव की
ये भटके बारम्बार
लौ लगाये न ईश से
पगला बिलखे सौ सौ बार
शीश झुकाये मन्दिर में
हो जैसे कोई मज़बूरी
अगरबत्ती भी यूँ जलाए
जैसे ईश पे करे उपकार
कपट कुण्ड में स्नान करे
और विकृत रखे विचार
कैसे मिलेगा जीव तुझे
उस पालनहार का प्यार
सत्य धर्म है,सत्य कर्म है
सत्य जीवन आधार
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 454

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 4:00pm

 आदरणीय  pratibha pande जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on August 10, 2015 at 7:12pm

अगरबत्ती भी यूं जलाये जैसे ईश पर करे उपकार ,कितनी सच्ची पंक्तियाँ हैं बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on August 9, 2015 at 9:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 9, 2015 at 1:17pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सार्थक सन्देश देती पंक्तिया कही हैं , रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on August 7, 2015 at 11:49am

आदरणीय  Dr. Vijai Shankerजी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 10:00pm
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार
बहुत सुन्दर विचार , आदरणीय सुशील सरना जी। बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर
Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 7:42pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 4:23pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service