बहर - 212 212 212 212
लहरें पतवार के संग किलकती रहीं
मन के पाँवों में पायल सी बजती रहीं
पालकी बैठ सपने गए साथ में
रास्ते भर उमंगें लरजती रहीं
शोखियों की सहेली बनीं चूडि़याँ
लाजवन्ती निगाहें बरजती रहीं
सपनों में रातरानी ने घर कर लिया
कल्पनायें दुल्हन बन के सजती रहीं
देह भर में खिलीं क्यारियाँ-क्यारियाँ
चाहतें ओढ़ घूंघट मचलती रहीं
तितलियों सी निगाहें उड़ीं दूर तक
श्वास-प्रश्वास लय पर थिरकती रहीं
वक्ष के आम्रवन बौर से भर गए
धड़कनें कोयलों सी कुहुकती रहीं
पुष्प सस्मित अधर-दल पे बिछते रहे
खुश्बुयें शिशु सी आंचल को भरती रहीं
मौलिक एवं अप्रकाशित
-------- सुलभ अग्निहोत्री
Comment
बहुत-बहुत आभार Shree Sunil जी !
बहुत-बहुत आभार Ravi Shukla जी !
लहरें पतवार के सँग किलकती रहीं - संग नहीं सँग पढ़ें
चलिसे रातरानी ने ख्वाबों में घर कर लिया’ किए लेते हैं
बहुत-बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी !
बहुत-बहुत आभार आदरणीय laxman dhami जी !
बहुत-बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी !
आरणीय सुलभ जी ग़ज़ल अच्छी हुई है बधाई
हमें पढने में दो जगह मात्रा गिराने के बाद भी असुविधा हो रही है
लहरें पतवार के संग किलकती रहीं
मन के पाँवों में पायल सी बजती रहीं
सपनों में रातरानी ने घर कर लिया ......./// रात रानी ने ख्बाबों में घर कर लिया ////से कुछ सुविधा होती है ।
कल्पनायें दुल्हन बन के सजती रहीं
बाद के चार शेर में आपका परिचित अंदाज़ हिन्दी के सुन्दर शब्दों का चित्रण दिख रहा है
बधाई स्वीकार करें
ताजगी का अहसास कराती बहुत ही ताज़ा ग़ज़ल है आपकी. एक तो ये आहंगखेज़ बह्र और उसपर आपकी कहन ... वाह
आदरणीय सुलभ जी इस शानदार ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद हाज़िर है.
देह भर में खिलीं क्यारियाँ-क्यारियाँ
चाहतें ओढ़ घूंघट मचलती रहीं
आ० सुलभ भाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
शोखियों की सहेली बनीं चूडि़याँ
लाजवन्ती निगाहें बरजती रहीं -- क्या बात है , आदरणीय ग़ज़ल के लिये और इस शे र के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online