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पारिभाषिक पेटेंट (लघुकथा)

लघुकथा – पारिभाषिक पेटेंट

“ जनता का , जनता द्वारा, जनता पर शासन- अब्राहिम लिंकन.”

“ शाबाश बेटा.” शिक्षक के आँखों में चमक आ गई, “ अब कौन बताएगा ?”

“ सर ! मैं बताऊँ ?”

“ अरे ! तू बताएगा. कभी स्कूल समय से आया नहीं. प्रश्नोत्तर लिखे नहीं. रोज कामधंधे पर जाता है. तू क्या जानता है इस बारे में. चल तू भी बता दे ?”

“ सर ! हमारे द्वारा, हम पर शासन.”

यह सुन कर शिक्षक को एकलव्य और गुरु द्रोण याद आ गए , “ ओह ! यह तो प्रजातंत्र पर मेरी पारिभाषिक खोज हो सकती है.”

                            ----------------------

१६/०८/२०१५ ( मौलिक और अप्रकशित )

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Comment by Omprakash Kshatriya on August 22, 2015 at 8:27am
आभार आदरणीय कांता रॉय जी । आप को लघुकथा सुन्दर लगी । आप ने लघुकथा को अपना समर्थन दिया ।
Comment by kanta roy on August 21, 2015 at 7:24am
बहुत ही सुंदर लघुकथा बनी है आदरणीय ओमप्रकाश जी , बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Omprakash Kshatriya on August 19, 2015 at 7:35pm
आ जवाहर लाल सिंह जी आप का कथन 100 प्रतिशत सही है । यही प्रजातंत्र है । शुक्रिया लघुकथा पर समय सेने के लिए आप का ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 19, 2015 at 12:10pm

 "हमारे द्वारा, हम पर शासन" बहुत सुन्दर! यही तो हो रहा है गरीबों के नाम पर गरीबों का उपहास !

Comment by Omprakash Kshatriya on August 18, 2015 at 7:57pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आप ने लघुकथा को उदहारण दे कर अपना समर्थन दिया है वह काबिले तारीफ है । आप के इस अनुमोदन हेतु तहेदिल से शुक्रिया ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 6:33pm

बहुत बढ़िया लघु कथा ,एक बार एक मूवी देखी थी शायद सुर नाम था जिसमे शिष्या की धुन लेकर गुरु ने अपनी  बना ली  थी सच कहा ऐसे भी पेटेंट अपने नाम किये जाते हैं.बहुत बहुत बधाई आपको आ० ओम प्रकाश जी  

Comment by Omprakash Kshatriya on August 18, 2015 at 4:05pm
आ लक्ष्मण जी आप के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आप का ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:32am

आ0 भाई ओमप्रकाश जी , इस अच्छी लधुकथा के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Omprakash Kshatriya on August 17, 2015 at 1:44pm
आप को लघुकथा अच्छी लगी । इस के लिए शुक्रिया आ मिथिलेश जी
Comment by Omprakash Kshatriya on August 17, 2015 at 1:41pm
आ मिथिलेश जी आजकल पेटेंट ऐसे भी अपने नाम होते है ।

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